गुरुकुल ५

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Thursday 26 January 2012

कामना

स्वर्ण कलशों में
गोरस की धार से
सब क्या नहाते है?
अमृत की बूदों को

सब ललच जाते हैं,
सागर में रहकर भी
प्यासे एक बूंद को,
अंगूर के बेल तले
नीम को चबाते हैं

चाहेगा कौन फिर?
मरना फिर जीना,
चिर हो या क्षणिक
पर मंज़र बनाते हैं,

कौन ये चाहेगा?
पतझड़ का मौसम,
ठूंठ पर बन अमरबेल
जीवन बिताते हैं?


रमाकांत सिंह
11/01/1977
चित्र पिकासा से साभार

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