गुरुकुल ५

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Wednesday, 18 January 2012

अनुभूति

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता न भूयः।
अजो नित्यः शाश्‍वतोडयं पुराण्ये न हन्यते हन्यमाने शरीरः॥
the atman is neither born nor it dies.coming
in to seing ceasing to be donot take place in it.
Unborn; eternal; constant and ancient.
it is not killed when the body is slain.

- SHRI MADBHAGWATGITA

शायद नियति ने सूंघ लिये गंध
सूख गये आंसू कैसे टूट गये बंध?

मौत का वक्त मुकर्रर है परेशां क्यूं है?
आती है आयेगी इंतजार क्यूं इस तरह?

खुलती बंद होती आंखें झरते गिरते पंख
टूटती सिमटती सांसें छूटते गहराते रिश्ते

करीब अनचाहे कदम बेबस बेगाने से हम
संजोये टूटते सपने दूर बिखरते अपने

कैसे खुल गई आंख बंद होने के लिये?
और बंद हुए होंठ आंख खुलने के लिए

कौन कब मरता है किसके जीने के लिए?
लोग मिलते नहीं सब साथ चलने के लिए

और कौन मरता है किसके मरने के लिए?
जीता है कौन यहां सबके जीने के लिए?

तुमने गर सांस लिया जहर पीने के लिए
किसे परवाह तेरी तेरे ही सांसों के लिए?

तेरी सांसे थी रुकी कैसे अपनों के लिए?
मेरा सर झुक गया सज़दा करने के लिए

तू जुदा था सबसे प्यार करने के लिए
कौन जीता है यहां मरने-जीने के लिए?

और कौन मरता है जीने-मरने के लिए?
थम गया वक्त ज़रा तेरे सांसों के लिए

चित्र गूगल से साभार
रमाकांत सिंह 11/07 1998
श्री होल्कर जी मेरे बहनोई के देहावसान पर
आप श्री बालक राम पटेल बोतल्दा के अनुज थे।

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