अंकुरित बीज
न जाने कब
बन गया वृक्ष
और एक दिन अचानक
एक राजपुरूष
करने लगा चिंतन
व्यर्थ ही बैठकर
छांव में उसकी
जग की अर्थहीनता पर
लोगों ने उसे बुद्ध बना दिया
और वृक्ष बन गया
बोधि वृक्ष
नतमस्तक हो गया
सम्राट अशोक भी उसके कथन पर
संसार अभिभूत हो उठा
उसके मरम पर
कालक्रम निरंतर रहा
पर समय के साथ-साथ
सूखती गई कुछ डालें
पखेरू आज भी
बैठते हैं शाखाओं पर
पत्तियों ने डालियों से
तोड़ लिया नाता
बनते गए कोटर सूखी डालों में
शनैः-शनैः
भक्तों ने बांध दी
पत्थरों से
दुबराती जड़ें
वृक्ष निहारता रहा शून्य में
अपनी नियति
एक दिन मैं भी
बैठ गया उसकी छांव में
बनने बुद्ध
किन्तु आज तलक
समझ नहीं पाया
बोधि वृक्ष का अपराध.
रमाकांत सिंह 06/07/1985
बहुत बढ़िया
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