कुम्हार गीली मिट्टी से
अनगढ़ गढ़ गया
वेदों की बातें
लकड़हारा कह गया
बच्चा के संगत में संत
निपट मूरख रह गया
सत्य खोजने में कब?
बुद्ध खो गया.
कंठ मुक्त होता है
जब प्रश्न अनुत्तरित
तब दिशा भ्रम में
क्रोध उपजता है
धारणाएं छिन्न-भिन्न होती हैं
सुसुप्त जागृत होती है
झरने फूटते नहीं
लावा बह निकलता है.
शिशुपाल और बर्बरीक ही
क्यों कटते हैं सुदर्शन से
धर्म और अधर्म की
क्यों परिभाषाएं बदलती हैं.
रमाकांत सिंह 06/07/2000
दर्शक की स्थिति बदलती है तो परिभाषा भी बदल जाती है।
ReplyDeleteबहुत गहरे प्रश्न उठाती कविता...जीवन ऐसे ही विरोधाभासों से भरा हुआ है.
ReplyDeleteसंवेदनापूर्ण गढ़े सवाल.
ReplyDeleteWe need to change with time.
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