आओ मेरे संग आओ,
झूमो नाचो गाओ
नियति नटी झूमकर,
यूं धरा चूमकर
गा उठे संग अपने,
मन में सजाये सपने,
आओ मेरे संग आओ
चंद्रमाला सजा,
क्रांति किरणें लिए
नवकला अभिराम से,
भाग्य भास्कर के दिये
स्वर्ग है भूतल बना,
कर्म की ले ज्योत्सना
एक नव संकल्प ले,
आओ मेरे संग आओ ...
कर्म संदेश ले,
शांति धारा बहा
कल कथा आलोक से,
रम्य शुचि प्राची सजे
त्यागमय जीवन बना,
धर्म पूरित कामना
शक्ति का आह्वान ले,
आओ मेरे संग आओ
आहुति बलिदान से,
शील सौरभ ज्ञान के
एक नव संकल्प ले,
नवल मुक्ति ज्ञान के,
प्रेम सुधा बरसाओ,
कर्म पथिक बन जाओ,
आओ मेरे संग आओ.
रमाकान्त सिंह 12/01/1980 दंतेवाड़ा
चित्र गूगल से साभार
परम आदरणीय प्राचार्य (स्व.) श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी को समर्पित,
आपने शा उ मा शाला, दंतेवाड़ा में मुझे पुत्रवत् स्नेह देकर मार्गदर्शन दिया।
प्रेरक, पवित्र स्मरण.
ReplyDeleteप्रेम सुधा तो बरसनी चाहिए... आखिर यही तो अंतिम सहारा है॥
ReplyDeleteबहुत सुंदर व सार्थक संदेश देती हुई कविता..
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