सूर्य की भांति स्थिर
अन्य पिण्डों के सापेक्ष,
परिवर्तनशील स्थिरता भी?
परिवर्तन प्रकृति का मूल
फिर यह भ्रम क्यों?
स्थिर रह गया मैं
अन्य के सापेक्ष,
और बदल गये सब
मेरे सापेक्ष,
सापेक्ष या निरपेक्ष
परिवर्तन या स्थिरता,
हास्यास्पद और करूण
अपनी-अपनी मानसिकता
परिवर्तन को न सह पाने की,
क्योंकि स्थिर रह गया मैं
सबके सापेक्ष,
चल-अचल,
कल, आज और कल
यथावत्
देश, काल,
परिस्थितियां और पात्र
सृष्टि का संतुलन
नियति चक्र में
अपरिवर्तित होते हुए भी
परिवर्तनशील
प्रति पल
अपना प्रतिबिंब लहरों पर
रमाकांत सिंह 4/6/1994
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता श्री राजेश कुमार सिंह
को समर्पित
यहाँ सब कुछ बदल भी रहा है और कुछ ऐसा भी है जो अबदल है...परिवर्तन और स्थिरता के इस चक्र को व्यक्त करती हुई सुंदर रचना...
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