प्रजातंत्र का अस्तित्व
मेरे देश में कहां है?
जो जहां बैठा था
वही पुनः वहां है
मुखौटे से मुखौटे
थोड़े कुछ बदले हैं
यहां से वहां जाकर
आसन बस अदले हैं
नेता जी हंसकर कब बोले?
भाषन में मुंह थोड़ा सा खोले
बंधु तुम जानते नहीं?
भरम को पहचानते नहीं
यहां परतंत्र है
यहां पर तंत्र है
यहां परतंत्र हैं
यहां लोकतंत्र है
यहां पर तंत्र हैं
यहां परतंत्र हैं?
यही लोकतंत्र है
यहीं प्रजातंत्र है
यहां कैसे आदमी?
पागल खसुआये
जंजीरों में जकड़ा
कुत्ते सा स्वतंत्र है
मेरा देश महान है
इंसान बस इंसान है
हमें सबकी परवाह है?
तब ही तो ये चारागाह है
हमें अपनी उपलब्धियों पर
सदा-सदा केवल गर्व है
पंद्रह अगस्त को ही भैया
गणतंत्र पर्व है, गणतंत्र पर्व है
रमाकांत सिंह 17/09/1981
चित्र गूगल से साभार
मेरे देश में कहां है?
जो जहां बैठा था
वही पुनः वहां है
मुखौटे से मुखौटे
थोड़े कुछ बदले हैं
यहां से वहां जाकर
आसन बस अदले हैं
नेता जी हंसकर कब बोले?
भाषन में मुंह थोड़ा सा खोले
बंधु तुम जानते नहीं?
भरम को पहचानते नहीं
यहां परतंत्र है
यहां पर तंत्र है
यहां परतंत्र हैं
यहां लोकतंत्र है
यहां पर तंत्र हैं
यहां परतंत्र हैं?
यही लोकतंत्र है
यहीं प्रजातंत्र है
यहां कैसे आदमी?
पागल खसुआये
जंजीरों में जकड़ा
कुत्ते सा स्वतंत्र है
मेरा देश महान है
इंसान बस इंसान है
हमें सबकी परवाह है?
तब ही तो ये चारागाह है
हमें अपनी उपलब्धियों पर
सदा-सदा केवल गर्व है
पंद्रह अगस्त को ही भैया
गणतंत्र पर्व है, गणतंत्र पर्व है
रमाकांत सिंह 17/09/1981
चित्र गूगल से साभार
सटीक व्यंगात्मक पंक्तियाँ......
ReplyDeleteसत्य इतनी शालीनता और सुन्दरता से चित्रित किया सटीक
ReplyDeleteराजनीति पर कटाक्ष करती सशक्त रचना..
ReplyDeleteआपकी इस बेहतरीन और सामयिक, सटीक और सार्थक रचना के लिए कुछ पंक्तियां समर्पित हैं ---
ReplyDeleteजिसमें हिस्सा हो न सबके नाम का
ऐसा जीवन भी भला किस काम का?
जानवर मंहगे हुए इस देश में
आदमी मिलता है सस्ते दाम का!
वाह ! कमाल लिखा है |
ReplyDeleteone of the best collection i have
ReplyDeleteRajesh & Hetal