गढ़ दिया तुमने हमें
भाग्य अपना हम गढ़ेंगे
चलो आओ गढें हम
हमारा भाग्य अपना
हमारा भाग अपना...
हमारा भाग्य अपना
धरा की सहनशीलता ले
जल की शीतल धारा में
अनल की प्रखर ज्वाला से
गगन के खुले माथे पर
हवा के चपल हाथों से
भाग्य अपना हम बुनेंगे
भाग अपना हम चुनेंगे
वसुधा की हथेली पर
रचेंगे भाग्य अपना
सागर के लहरों पर
लिखेंगे भाग्य अपना
रवि की किरणों से
गढेंगे भाग्य अपना
सितारों की दुनियॅा में
बुनेंगे भाग्य अपना
पवन के कांधों पर
धरेंगे भाग्य अपना
भाग्य अपना हम गढ़ेंगे
भाग अपना हम बनेंगे
रमाकान्त सिंह 20/09/2000
मेरे विद्यालय के बच्चों को समर्पित
जिनमें मैं अपना बचपन जीता हूँ
भाग्य अपना हम गढ़ेंगे
चलो आओ गढें हम
हमारा भाग्य अपना
हमारा भाग अपना...
हमारा भाग्य अपना
धरा की सहनशीलता ले
जल की शीतल धारा में
अनल की प्रखर ज्वाला से
गगन के खुले माथे पर
हवा के चपल हाथों से
भाग्य अपना हम बुनेंगे
भाग अपना हम चुनेंगे
वसुधा की हथेली पर
रचेंगे भाग्य अपना
सागर के लहरों पर
लिखेंगे भाग्य अपना
रवि की किरणों से
गढेंगे भाग्य अपना
सितारों की दुनियॅा में
बुनेंगे भाग्य अपना
पवन के कांधों पर
धरेंगे भाग्य अपना
भाग्य अपना हम गढ़ेंगे
भाग अपना हम बनेंगे
रमाकान्त सिंह 20/09/2000
मेरे विद्यालय के बच्चों को समर्पित
जिनमें मैं अपना बचपन जीता हूँ
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
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