बचपन के सनेह
पिता के गेह
कल की खनक
न समझे कभी
अनबुझे अभी भी
भरमाते रहे,
चाय की चुस्की
बातों की खुश्की
अर्थ की सुस्ती
मौज न मस्ती
रिश्तों से प्रेम
विश्वास के नेम
झनकते रहे,
दादा का कुआं
बीड़ी का धुआं
मुंह में गाली
बाग का माली
भाजी का परोसा
हाथ का भरोसा
थकते रहे,
मां की व्यथा
बहनों के आंसू
भाई के खून
हास-परिहास से
विधाता के त्रास
बहते रहे,
मृत्यु का वरण
अनजाने हरण
रेत कणों सा
हर पल क्षरण
अपनों के नयनों में
जीवन-मरण
सहते रहे,
पिता संग यात्रा
हास न त्रास
वार्ता न रूदन
पीड़ा न क्रन्दन
मोक्ष को अपने
संग-अकेल
चलते रहे,
शंखों का नाद
घंटों का निनाद
वेदों के वाक्य
उपनिषदों के श्लोक
मन को शांत
चेतना को क्लांत
करते रहे
रमाकांत सिंह 14/08/1994
पिता की मृत्यु के बाद उनके रिक्तता पर
बाबूजी मेरे पिता के साथ-साथ अच्छे मित्र
भी रहे, उनके अनुशासन एवं मार्गदर्शन से
ही जीवन में स्थिरता मिली।
पिता के गेह
कल की खनक
न समझे कभी
अनबुझे अभी भी
भरमाते रहे,
चाय की चुस्की
बातों की खुश्की
अर्थ की सुस्ती
मौज न मस्ती
रिश्तों से प्रेम
विश्वास के नेम
झनकते रहे,
दादा का कुआं
बीड़ी का धुआं
मुंह में गाली
बाग का माली
भाजी का परोसा
हाथ का भरोसा
थकते रहे,
मां की व्यथा
बहनों के आंसू
भाई के खून
हास-परिहास से
विधाता के त्रास
बहते रहे,
मृत्यु का वरण
अनजाने हरण
रेत कणों सा
हर पल क्षरण
अपनों के नयनों में
जीवन-मरण
सहते रहे,
पिता संग यात्रा
हास न त्रास
वार्ता न रूदन
पीड़ा न क्रन्दन
मोक्ष को अपने
संग-अकेल
चलते रहे,
शंखों का नाद
घंटों का निनाद
वेदों के वाक्य
उपनिषदों के श्लोक
मन को शांत
चेतना को क्लांत
करते रहे
रमाकांत सिंह 14/08/1994
पिता की मृत्यु के बाद उनके रिक्तता पर
बाबूजी मेरे पिता के साथ-साथ अच्छे मित्र
भी रहे, उनके अनुशासन एवं मार्गदर्शन से
ही जीवन में स्थिरता मिली।
बेहतरीन, जीवन का एक समग्र-संपूर्ण अध्याय.
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ से उपजी मार्मिक रचना!
ReplyDeletebahut hi saarthk rachna....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी पंक्तियाँ हैं......ये रिक्तता तो सदा बनी रहेगी , अपनों का दूर जाना सदा ही खलता है जीवन में
ReplyDeleteमर्म स्पर्शी रचना .. जीवन के यथार्थ को कहती हुई
ReplyDeleteक्या कहूँ..? कुछ कहते नहीं बन रहा है.. बस .. सच दिख रहा है..
ReplyDeleteशंखों का नाद
ReplyDeleteघंटों का निनाद
वेदों के वाक्य
उपनिषदों के श्लोक
मन को शांत
चेतना को क्लांत
करते रहे ...
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