गुरुकुल ५

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Monday 23 January 2012

प्रतिशोध


राजपथ पर घटित
एक वारदात
प्रतिशोध या हत्या
और चिंतित हो गये
संपूर्ण नपुंसक
न कोई चिंतन
न कोई चिंता,

आजादी के बाद भी
विगत वर्षों में
सरहद पर होती
अनगिनत हत्याओं को
शहादत बतलाकर
ओढ़ा दिया तिरंगा,


बिलखती रही मां
निढाल हो गये बच्चे
कागजी ढ़ाढ़स से
अपनों की छांव में,

अतिथी के वेष में
पहुंचा सौदागर
पड़ोसी परदेश से
और सब
शालीनता-विनम्रता में
भूल गए पूछना
न ही कभी दी चेतावनी
न ही कभी करारा जवाब

किन्तु चिंतित हो गये
राजपथ की हत्या पर
क्योंकि इस राह पर
बरसों इन्हें टहलना है

रमाकांत सिंह 25/07/2001
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. वर्तमान परिदृश्य पर आपकी यह रचना गहरा प्रकाश डालती है ..और निश्चित रूप से प्रासंगिक है यह आज के सन्दर्भों में ....!

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  2. सरहद पर होती
    अनगिनत हत्याओं को
    शहादत बतलाकर
    ओढ़ा दिया तिरंगा,
    बिलखती रही मां
    निढाल हो गये बच्चे
    कागजी ढ़ाढ़स से
    अपनों की छांव में...
    ..ek kadwi sachhai...
    jo apno ko khota hai wahi iska dukh bakhubi jaanta hai...
    gahan marm ko chhuti rachna prastuti hetu aabhar!

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  3. सार्थक चिंतन... अच्छी रचना...
    हार्दिक बधाई...

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  4. और चिंतित हो गये
    संपूर्ण नपुंसक.....

    aapke शब्दों में aakrosh hai
    jo ek sarthak kavita ko janm dete hain .....

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  5. और चिंतित हो गये
    संपूर्ण नपुंसक.....

    aapke शब्दों में aakrosh hai
    jo ek sarthak kavita ko janm dete hain .....

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