काल करइन के घर म
बिन कपाट परछी के
झर-झर ले आवय
सुर्रा घाम बरसात जाड़,
पानी गिरय त,
गमक जावय रद्दा
ठडि़या जावय रुंवा,
भर मंझनियां
कहां गै घाम, कहां गै बानी,
तरिया के छोंड़, मनसे के पानी
कांप गै तन, फेर नइ भरय मन,
सुनबे त करत हे, सनन-सनन
ए दे देख तो, पथरा ईंटा के घर म
मनसे घला, पथरा ईंटा के होगे।
शब्दार्थ
कपाट=दरवाजा, परछी=बरामदा, झर-झर=एकाएक गिरना,
आवय=आता था, सुर्रा=तेज ठंडी हवा, घाम=धूप, बरसात=वर्षा
जाड़=ठंड, गिरय=गिरने पर, त=तब, गमक=सुगंध, जावय=जाता था,
रद्दा=रास्ता, ठडि़या=खड़ा, जावय=जाता था, रूंवा=बाल, भर=भरी,
मंझनिया=दोपहरी, गै=चला गया, बानी=वाणी/कथन, तरिया=तालाब,
छोंड़=छोडो, पानी=सम्मान, कांप=कांपना, गै=गया, तन=शरीर, फेर=फिर,
नई=नहीं, भरय=संतुष्ट, मन=आत्मा, सुनबे=सुनने पर, करत=करना, हे=है,
सनन-सनन=सन-सन की आवाज, ए=यह, दे=लो, देख=देखना, तो=लो,
पथरा=पत्थर, ईंटा=ईंट, के=का, घर=घर, म=में, होगे=हो गया।
रमाकांत सिंह 10/06/2010
चित्र गूगल से साभार
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
ReplyDeleteअति सुन्दर..
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