गुरुकुल ५

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Saturday 24 November 2012

बेगाना



* मुस्कुराकर मृत्यु ने
बढाकर हाथ बड़े प्यार से
स्वागत किया
बड़े भोर

* रोती ज़िन्दगी ने
सम्हलने न दिया
हर राह हर एक मोड़ पर
ताने लिये

* ज़िन्दगी आज ही
क्यूँ लगती है अपनी?
पीपल ठूंठ पर बैठा
खोजता साया धूप के

* सिसकता बचपन मेरा
लगाता रहा गले
हर बार मुड़कर
ग़म और मायूसी को

* धीरे धीरे मेरे अपनों ने
छुड़ाया दामन
मैं बेबस अवाक रहा
अँधेरी रात में

* देखता हूँ नसीब
नहर के ठहरे
गंदले धार पर
चेहरा बड़े विश्वास से

* ज़रूरत अब कैसी और कहाँ?
सब कुछ बीत गया?
भरम भी टूटा
बंद दरवाजे से

* समझा जिसे बेगाना
चला आया वही शाम से
बांटकर दर्द
सारे ले गया

   
 22.10. 2012
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
जो हर बार मेरे दर्द बाँट
ले जाती है संग अपने

चित्र गूगल से साभार

Saturday 17 November 2012

विक्रम और वेताल 6


अकलतरा पूर्व विधायक श्री राकेश कुमार सिंह के आज 17.11.2012 को आकस्मिक निधन पर
पोस्ट उनकी स्मृति में समर्पित

 राजन
आप ही परमपिता की संतान हो?
हो गई इति?
पूरी कर ली
मन की मुराद?
क्या मिल गया आपको
वातावरण को दूषित करके?

क्या आपके दीया  जला देने से
मंगलू का घर हो गया रोशन?
आपने जलाये थे घी के दीये?
फिर क्यों?
पिछले बरस आपके धमाके से
पुनिया की आँखों से
चली गई रोशनी

बांटी है आपने सदा
अंधे को कम्बल?
और भूखे को चश्मा?
ज्ञान रखते हैं?
जीव और परिस्थिति की
अपनी मौलिक आवश्यकता

लोक कल्याण
क्या है?

राजन
पूर्णता या आदर्श की सोचते हो?
ये सभी दास हैं?
देश, काल, परिस्थिति, और पात्र के
सभी सापेक्ष होते हैं?
नहीं बदलते एक दुसरे के सापेक्ष?

चलो बदलकर देखो?
किसी एक को दुसरे के सापेक्ष
कोई भी चीज या मान्यता
रह पायेगी नियंत्रण में?
परिकल्पना एक निश्चित काल की
संतान होती है?

परिकल्पना बटन दबाते ही पुरे हों
तब सार्थकता सिद्ध होती है?

रामराज्य की परिकल्पना
राजा दशरथ जी की थी?
पूर्ण होने में समय लगा?
रामराज्य में अयोध्या पति
अपने पिता संग?

बदलती हैं मान्यताएं?
बदल जाते हैं मापदंड?
हर्ष-उल्लास
बदल जाते हैं शोक में?
प्रदूषित कर दिया जनमानस को?

पीढ़ी भले नई है
तीज-त्योहार वही हैं?
जीवन, पल, क्षण, हमारे ही?
या न हों तब भी
कर दें सत्यानाश श्रृष्टि का?

राजन
विस्मृत कर दिया?
दीया के प्रकाश में
दैहिक, दैविक, भौतिक, ताप से मुक्त
रामराज्य?
या उन्मुक्त, स्वछन्द, उदण्ड जीवन शैली?

क्यों नहीं?

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखः भाग भवेत

12.11.2001
चित्र गूगल से साभार

Monday 12 November 2012

लम्हा-लम्हा



तू नहीं तेरी यादें नहीं
तो दिवाली कैसी?

तू नहीं तेरा चेहरा नहीं
तो फिर दिवाली मेरी?

तू है?
तेरी तन्हाइयों संग

ये दिवाली?
दिवाली मेरी?

लम्हा-लम्हा
गुजर गई ज़िन्दगी

सोचता हूँ तेरे बिन
कटेगी ये ज़िन्दगी?

रोशनी में कटती नहीं
अंधेरों में क्या खाक जी पाऊंगा

मेरी ज़िन्दगी को समर्पित
12नवम्बर 2012
चित्र गूगल से साभार

Friday 9 November 2012

खता





बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
यूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी


मैं हर सितारे से तेरे दर पता पूछूँगा
सूनी राहों से तेरी जब भी सदा आयेगी


मैं हरेक मोड़ से अपनी खता पूछूँगा
बंद होठों से जब भी गीत गुनगुनाओगी


कभी-कभी बीत जाता है एक युग और हम
खड़े रहते हैं वहीँ के वहीँ जहाँ हम कल खड़े थे .

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ बीत गये 14.04.1978 से
आज तक शायद 34 बरस 06 महीने 26 दिन।

10.11.2012
चित्र गूगल से साभार

Friday 2 November 2012

बुलबुले




1*
इंट-पत्थर-मिट्टी की
बातें करते हो
बुलंद लोगों को भी
टुकड़ों में बंटे
गिरते-ढहते देखा है

2*
झूठी आशा
खोखली दिलासा से
हो जाती हैं आँखें नम
दिल बहलता नहीं
तार-तार होता है

3*
बुलबुले सावन के हैं
बनते हैं फुट जायेंगे
फिर छिछोरी बातों पर
सर उठाकर
गर्व करें

4*
हर बरस लगते हैं मेले
आयेगा कद्रदां कोई
भांप लेगा
आँखों से दिल की बातें
जान लेगा नीयत हमारी

20.10.2012
चित्र गूगल से साभार