गुरुकुल ५

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Friday, 9 November 2012

खता





बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
यूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी


मैं हर सितारे से तेरे दर पता पूछूँगा
सूनी राहों से तेरी जब भी सदा आयेगी


मैं हरेक मोड़ से अपनी खता पूछूँगा
बंद होठों से जब भी गीत गुनगुनाओगी


कभी-कभी बीत जाता है एक युग और हम
खड़े रहते हैं वहीँ के वहीँ जहाँ हम कल खड़े थे .

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ बीत गये 14.04.1978 से
आज तक शायद 34 बरस 06 महीने 26 दिन।

10.11.2012
चित्र गूगल से साभार

12 comments:

  1. मैं हर सितारे से तेरे दर पता पूछूँगा
    सूनी राहों से तेरी जब भी सदा आयेगी
    वाह !!! कितनी आसानी से इतने नाज़ुक एहसासों को लिख डाला आपने...बहुत प्यारी पोस्ट.

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  2. अडिग बने रहने का सुख.

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  3. बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
    यूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी...
    दिल की गहराइयों से निकले शब्द... कभी - कभी एक पल में भी कई युग बीत जाते हैं... सादर

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  4. मन पूरा लेखा जोखा रखता है....

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  5. बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
    यूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी...
    दिल से निकले गहरे भाव है
    बहुत भावप्रद रचना...

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  6. बहुत सुन्दर रचना....

    सादर
    अनु

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  7. बहुत सुन्दर भावप्रद रचना...

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  8. बहुत नाज़ुक एहसासों को लिख डाला आपने,,,रमाकांत जी,

    हो गए बरसों की आँखों की खटक जाती नही,
    जब कोई तिनका उड़ा,घर अपना याद आया,,,,,

    RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

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  9. साढ़े ३४ बरस बीतने के बाद भी भाव और भोलापन जस का तस है मैं हर एक मोड़ से खता पूछूँगा

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  10. पलों का हिसाब बरसों में फैला हुआ!!

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  11. वक़्त रुकता नहीं न लोग रुका करते हैं
    तुमसे जीते थे तभी तुम पे अभी मरते हैं

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  12. उस युग में भी सब कहाँ सिमटता है ..दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..

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