बंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
यूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी
मैं हर सितारे से तेरे दर पता पूछूँगा
सूनी राहों से तेरी जब भी सदा आयेगी
मैं हरेक मोड़ से अपनी खता पूछूँगा
बंद होठों से जब भी गीत गुनगुनाओगी
कभी-कभी बीत जाता है एक युग और हम
खड़े रहते हैं वहीँ के वहीँ जहाँ हम कल खड़े थे .
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ बीत गये 14.04.1978 से
आज तक शायद 34 बरस 06 महीने 26 दिन।
10.11.2012
चित्र गूगल से साभार
मैं हर सितारे से तेरे दर पता पूछूँगा
ReplyDeleteसूनी राहों से तेरी जब भी सदा आयेगी
वाह !!! कितनी आसानी से इतने नाज़ुक एहसासों को लिख डाला आपने...बहुत प्यारी पोस्ट.
अडिग बने रहने का सुख.
ReplyDeleteबंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
ReplyDeleteयूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी...
दिल की गहराइयों से निकले शब्द... कभी - कभी एक पल में भी कई युग बीत जाते हैं... सादर
मन पूरा लेखा जोखा रखता है....
ReplyDeleteबंद पलकों में तेरे ख्वाब सजाऊं कैसे
ReplyDeleteयूँ हरेक शाम तेरी याद जब रुलायेगी...
दिल से निकले गहरे भाव है
बहुत भावप्रद रचना...
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत सुन्दर भावप्रद रचना...
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक एहसासों को लिख डाला आपने,,,रमाकांत जी,
ReplyDeleteहो गए बरसों की आँखों की खटक जाती नही,
जब कोई तिनका उड़ा,घर अपना याद आया,,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
साढ़े ३४ बरस बीतने के बाद भी भाव और भोलापन जस का तस है मैं हर एक मोड़ से खता पूछूँगा
ReplyDeleteपलों का हिसाब बरसों में फैला हुआ!!
ReplyDeleteवक़्त रुकता नहीं न लोग रुका करते हैं
ReplyDeleteतुमसे जीते थे तभी तुम पे अभी मरते हैं
उस युग में भी सब कहाँ सिमटता है ..दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..
ReplyDelete