1*
इंट-पत्थर-मिट्टी की
बातें करते हो
बुलंद लोगों को भी
टुकड़ों में बंटे
गिरते-ढहते देखा है
2*
झूठी आशा
खोखली दिलासा से
हो जाती हैं आँखें नम
दिल बहलता नहीं
तार-तार होता है
3*
बुलबुले सावन के हैं
बनते हैं फुट जायेंगे
फिर छिछोरी बातों पर
सर उठाकर
गर्व करें
4*
हर बरस लगते हैं मेले
आयेगा कद्रदां कोई
भांप लेगा
आँखों से दिल की बातें
जान लेगा नीयत हमारी
20.10.2012
चित्र गूगल से साभार
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई रमाकांत जी ||
गहन बात कहती सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
ReplyDeleteइंट-पत्थर-मिट्टी की
ReplyDeleteबातें करते हो
बुलंद लोगों को भी
टुकड़ों में बंटे
गिरते-ढहते देखा है,,,,,बहुत उम्दा,,,,,
गहन बातो को कहती बेहतरीन क्षणिकाएँ,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteगहन भाव व्यक्त करती
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएँ..
झूठी आशा
खोखली दिलासा से
हो जाती हैं आँखें नम
दिल बहलता नहीं
तार-तार होता है
भावपूर्ण..
नीयत तो नेक जान पड़ती है.
ReplyDeleteरमाकांत जी! क्षणिकाएं वैसे भी बुलबुले की तरह होती हैं.. उभरती हैं और फटाक.. दिखा जाती हैं सतरंगी इन्द्रधनुष.. जैसे आपकी ये चारों क्षणिकाएं और बोनस में तस्वीर!! :)
ReplyDeletebahut hi gahre bhaw.......harek prastuti ki...
ReplyDeleteमन को छूती रचना।
ReplyDeleteबढ़िया क्षणिकाएं है।
ReplyDeleteऔर तस्वीर ने तो मार ही डाला है।
गज़ब है गज़ब।
अद्भुत ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteaabhar....
क्षणिकाओं का अर्थ गांभीर्य स्पष्ट झलक रहा है।
ReplyDeleteअद्भुत अहसास.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार रमाकान्त जी..
ReplyDeleteजीवन के ये विरोधभास भी अजीब है गंभीर प्रस्तुति
ReplyDeleteखूबसूरत बुलबुले..जुदा-जुदा रंगों में ..
ReplyDeleteबुलबुले की तरह मन को छूती रचना सुंदर क्षणिकाएं !
ReplyDeleteबुलबुले सावन के हैं
ReplyDeleteबनते हैं फुट जायेंगे
फिर छिछोरी बातों पर
सर उठाकर
गर्व करें
सभी मुक्तक बहुत बढ़िया
बुलंद इंसान भी टुकड़ों-टुकड़ों से ही तो बना होता है, साधारण से ज्यादा टुकड़ों से।
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