* मुस्कुराकर मृत्यु ने
बढाकर हाथ बड़े प्यार से
स्वागत किया
बड़े भोर
* रोती ज़िन्दगी ने
सम्हलने न दिया
हर राह हर एक मोड़ पर
ताने लिये
* ज़िन्दगी आज ही
क्यूँ लगती है अपनी?
पीपल ठूंठ पर बैठा
खोजता साया धूप के
* सिसकता बचपन मेरा
लगाता रहा गले
हर बार मुड़कर
ग़म और मायूसी को
* धीरे धीरे मेरे अपनों ने
छुड़ाया दामन
मैं बेबस अवाक रहा
अँधेरी रात में
* देखता हूँ नसीब
नहर के ठहरे
गंदले धार पर
चेहरा बड़े विश्वास से
* ज़रूरत अब कैसी और कहाँ?
सब कुछ बीत गया?
भरम भी टूटा
बंद दरवाजे से
* समझा जिसे बेगाना
चला आया वही शाम से
बांटकर दर्द
सारे ले गया
22.10. 2012
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
जो हर बार मेरे दर्द बाँट
ले जाती है संग अपने
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर अहसास उत्कृष्ट रचना,,,,
ReplyDeleterecent post : प्यार न भूले,,,
ReplyDeleteकल 25/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बढिया
ReplyDeleteअनुपम भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसमझा जिसे बेगाना
ReplyDeleteचला आया वही शाम से
बांटकर दर्द
सारे ले गया
होता है अक्सर ऐसा .... सुंदर प्रस्तुति
कोमल भाव लिए..बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजीवन की अनुभूतियां शब्दों में साकार हुई हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteमर्म स्पर्श करती..भावपूर्ण..दर्द की अभिव्यक्ति!बहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteकुछ कवितायें पढकर लगता है सिंह साहब कि बहुत कुछ समेटे हैं आप, ऐसी ही ये कविता भी।
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