गुरुकुल ५

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Thursday 25 October 2012

मै हूँ ना



मेरी मृत्यु पर

* मत उठाना
मेरे प्यार को
बड़े जतन से सुलाया है
सहलाकर गेंसुओं को

* न करना बात
देख पाऊंगा
तपन चेहरे की
बंद आँखें हैं मेरी

* खिलाकर भोज
मेरी ज़िन्दगी को
दुखाना दिल भी
यूँ तुमको भाता है

* संदेशा देना वहां
जहाँ कोई बाट तके
बैठा रहे
बस द्वार पर

* न लेना और देना
आज ऐवज मेरे
खुली मुट्ठी
न बाँध पाऊंगा

* चलो बैठो
किसी दरख़्त के साये तले
करो तुम बात
मैं सुनता रहूँगा

* न गाना गीत
स्वर दे पाऊंगा
बंद होठ हिले तो
लोग खफ़ा होंगे

* चलो हंस लो
टोकना-रोकना
छोड़ा मैंने
तुम दिल की बात कहो

* न करना इंतज़ार
बड़ी मुद्दत के बाद
आई है नींद
सोने दे

* आज तुम हो
मै हूँ ना
तुम करो अपनी
कौन रोकेगा

* है पता मुझको
इंतज़ार किसको
मेरे आने-जाने
एक पल ठहरने का

* जाना है
चले जायेंगे
ये बेरुखी क्यूँ
हर घडी

22.10.2012
समर्पित * मेरी जिंदगी * को
जो मेरी जान और इमान  से भी
ज्यादा कीमती जिसके बिना
सब कुछ बेमानी सा लगता है

चित्र गूगल से साभार  

Friday 19 October 2012

जन्मदिन

जन्मदिन की शुभकामना 20.10.2012

मैंने जन्म ले लिया?
शास्त्रगत या वैज्ञानिक?
निर्धारित कर दिया गया?
जन्मतिथी, जन्मांक, मूलांक

अंकित कर?
काटा गया गर्भनाल?
मुक्त हो गया था मैं गर्भ से?
जन्म के योग से?

कहीं ऐसा तो नहीं?
हमने जन्म ही नहीं लिया
आपने समझ भर लिया
काट दिया गर्भनाल

डिम्बआसन  जुड़ा गर्भ से
गर्भनाल जुड़ा अपरा से
गर्भनाल से जुड़ा शिशु
तब जन्म कैसा?

यदि मैं मृत
तब जन्म?
भाग्य का निर्धारण किस आधार पर?
जब जन्म और मृत्यु एक ही पल में

जन्म शास्त्रसम्मत?
वा लोकसम्मत?
जैसे मृत्यु वैज्ञानिक
या शास्त्रसम्मत

जन्मतिथि का निर्धारण
जन्म समय का निर्धारण
प्राकृतिक जन्म पर?
या अप्राकृतिक कृत्य द्वारा?

जन्मतिथि और समय को ही
बदल डाला कृत्रिम उपादानों से
चिकित्सकीय सलाह पर
ग्रह, नक्षत्र, राशि को मांगकर?

कभी कभी जब घट जाता है
होनी जिसे अक्सर
कह देते हैं अनहोनी
आँख मूंदकर


किस अंक की गणना के आधार पर
ग्रह, नक्षत्र, राशि, कुंडली?
कैसी गणना?
जब आधार ही निराधार


बना दी कुंडली जो बतलाती है?
लिंग लड़का या लड़की
मृत या जीवित
विवाहित या अविवाहित

कालसर्प योग, विवाह
जन्म, मृत्यु
संस्कार, दान, पुण्य
सरल किन्तु सदा जटिल

एक आधारहीन
जन्मदिन, जन्म समय
जन्मांक, मूलांक
प्राण वायु के गणना पर?

20.10.2012
कुंडली की  धारणा सदैव भ्रमित करती है?
जन्मदिन, समय, कभी कभी असहज कर
देते है जीवन चक्र को तो मन प्रश्न कर उठता है

यह रचना मेरी मानस पुत्री *श्रीमती आभासिंह*
को उसके जन्मदिन 20 अक्टूबर 2012 को
सस्नेह समर्पित



Saturday 13 October 2012

संवाद


तुम जानती हो?
कि मैं सब कुछ जानता हूं

सब कुछ?

लेकिन तुम्हारी आँखों ने तो
कभी कुछ नहीं कहा

अरे तुम नहीं जानते?
मैं तो समझती थी

तुम समझती हो?
तुमने कहा और मैंने मान लिया?

मैंने ऐसा कब कहा?

तुम्हे अपने किये पर
कोई ग्लानि नहीं?



क्यों?
होना चाहिये?

नहीं मैं अपनी शर्तों पर
अपनी ज़िन्दगी जीती हूँ
मैं क्यों उसकी परवाह करूँ?
जिसे मेरी फिक्र नहीं

क्या यह एक छल नहीं?

ऐसा तुम सोचते हो
मैं नहीं

ये तुम्हारी नादानी वा जिद?

बिलकुल नहीं

यह एक शैली है
जीवन शैली

मैं अब तुमसे पूछती हूं
तुम्हे संकोच
या कभी ग्लानि
तब मैं क्यों
अपना जीवन खपाऊँ?

आर या पार
जीवन कहाँ बार-बार


चित्र गूगल से साभार


Saturday 6 October 2012

अपने हैं?



1
आसमां को देखकर भी
टेकरी पर चढ़ने के बाद ही
सब लोग
तुमसे
लगने लगते हैं?
क्षुद्र

2
बस तुम
एक वही काम
क्यों नहीं जानते?
जिसके लिये
परमात्मा ने तुम्हे जन्म दिया

3
अपना किया धरा छोड़कर
क्यों हर पल?
खोजते हो खुद को
औरों में

4
बरसों बरस
न सरोकार
सुख दुःख से
न उन लोगो से
जो तुम्हारे हैं
जिन्हें तुमने
अपना माना ही नहीं
कहने में शर्म नहीं?
मैं इस नगर का
वासी हूं?
और
ये मेरे
अपने हैं?

अष्टमी श्राद्ध पक्ष 2011
पूज्य बाबूजी स्व श्री जीत सिंह की स्मृति में
06.10.2012
चित्र गूगल से साभार 

Monday 1 October 2012

विक्रम वेताल 5


आज
अशांत और उद्विग्न विक्रम ने
वट वृक्ष के डाल पर चला दी तलवार
अचंभित वेताल धड़ाम से भूमिशात
राजन
आपने न्याय किया?

राजन आपको ज्ञात है?
मृत्यु के बाद
चोट का एहसास होता है?
आँखें उठाकर देखो

मुखमुद्रा बदली सी क्यों है?
परिधान और परिवेश भी?
खादी कुर्ता और ये टोपी क्यों?
चेहरे पर कुटिल मुस्कान में ख़ामोशी

उल्टा मैं लटकता हूँ?
और इनके कार्य प्रति पल?
राजन मैं मरकर भी समझता हूँ
और ये अपनी जानें

ये हरसिंगार के फूल
और झिलमिल करती रोशनी
ये तेज, ये प्रदीप्ति
वर्ष में एक बार ही?

हर बरस पोंछ दी जाती हैं मूर्तियां
पुरे बरस धूल ज़मने के लिये?
जन्मदिन पर ही?
धो देते हैं पखेरुओं के बीट
अगले साल तक भूलने के लिए?

राजन
किसने कहा था?
अपमानित करने के लिये
प्रतिमा स्थापित करें?

अकस्मात् शिल्पी के कृति के
होठ हिले और शब्द झरे
एक आग्रह फिर ललकार
अप्रसन्नता से रोष भरे

हाथ नहीं लगाना मुझे
तोड़ने या निर्जन वन में छोड़ने के लिए
अब घिन सी आती है
तुम पर नहीं खुद के कृत्य पर

क्यों नित नये स्वांग रचकर
जन्मदिन मानते हो?
कीर्तन और शांति के गीत गा
छलनी कर, तार-तार कर जाते हो

चलो पकड़ो अपनी राह
या चल पड़ो मेरी राह
साहस जुटाओ
गोली खाओगे?
कठिन हैं राहें?
स्वदेश प्रेम की?

गरीबों की आह?
न फूलों की चाह?
न काँटों की राह?
अकेले-अकेले?

राजन आज तो मौन तोड़ो
मृत शिराओं में खून छोड़ो

आज न सत्य का आग्रह
न गलत पर विस्मय
न वाणी में स्वधर्म
मौन मुस्कराहट धर चौराहे पर

संपूर्णतः मुक्त
ध्यानमग्न, निर्लिप्त, निश्चल
30 जनवरी 1948 से
हे महात्मन
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