गुरुकुल ५

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Monday, 1 October 2012

विक्रम वेताल 5


आज
अशांत और उद्विग्न विक्रम ने
वट वृक्ष के डाल पर चला दी तलवार
अचंभित वेताल धड़ाम से भूमिशात
राजन
आपने न्याय किया?

राजन आपको ज्ञात है?
मृत्यु के बाद
चोट का एहसास होता है?
आँखें उठाकर देखो

मुखमुद्रा बदली सी क्यों है?
परिधान और परिवेश भी?
खादी कुर्ता और ये टोपी क्यों?
चेहरे पर कुटिल मुस्कान में ख़ामोशी

उल्टा मैं लटकता हूँ?
और इनके कार्य प्रति पल?
राजन मैं मरकर भी समझता हूँ
और ये अपनी जानें

ये हरसिंगार के फूल
और झिलमिल करती रोशनी
ये तेज, ये प्रदीप्ति
वर्ष में एक बार ही?

हर बरस पोंछ दी जाती हैं मूर्तियां
पुरे बरस धूल ज़मने के लिये?
जन्मदिन पर ही?
धो देते हैं पखेरुओं के बीट
अगले साल तक भूलने के लिए?

राजन
किसने कहा था?
अपमानित करने के लिये
प्रतिमा स्थापित करें?

अकस्मात् शिल्पी के कृति के
होठ हिले और शब्द झरे
एक आग्रह फिर ललकार
अप्रसन्नता से रोष भरे

हाथ नहीं लगाना मुझे
तोड़ने या निर्जन वन में छोड़ने के लिए
अब घिन सी आती है
तुम पर नहीं खुद के कृत्य पर

क्यों नित नये स्वांग रचकर
जन्मदिन मानते हो?
कीर्तन और शांति के गीत गा
छलनी कर, तार-तार कर जाते हो

चलो पकड़ो अपनी राह
या चल पड़ो मेरी राह
साहस जुटाओ
गोली खाओगे?
कठिन हैं राहें?
स्वदेश प्रेम की?

गरीबों की आह?
न फूलों की चाह?
न काँटों की राह?
अकेले-अकेले?

राजन आज तो मौन तोड़ो
मृत शिराओं में खून छोड़ो

आज न सत्य का आग्रह
न गलत पर विस्मय
न वाणी में स्वधर्म
मौन मुस्कराहट धर चौराहे पर

संपूर्णतः मुक्त
ध्यानमग्न, निर्लिप्त, निश्चल
30 जनवरी 1948 से
हे महात्मन
मेरा प्रणाम स्वीकार करें

15 comments:

  1. आज न सत्य का आग्रह
    न गलत पर विस्मय
    न वाणी में स्वधर्म
    मौन मुस्कराहट धर चौराहे पर

    संपूर्णतः मुक्त
    ध्यानमग्न, निर्लिप्त, निश्चल
    गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति रमाकांत जी ||

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  3. हर बरस पोंछ दी जाती हैं मूर्तियां
    पुरे बरस धूल ज़मने के लिये?
    जन्मदिन पर ही?
    धो देते हैं पखेरुओं के बीट
    अगले साल तक भूलने के लिए?
    सिर्फ स्वांग बनकर रह गया है आज सत्याग्रह... गहन अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका

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  4. अनूठी श्रद्धांजलि.

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  5. राजन आज तो मौन तोड़ो
    मृत शिराओं में खून छोड़ो....
    ........
    बेताल, काश मैं भी लटक जाता इस पेड़ से उल्टा
    कम से कम मैं भी किसी बेबस से उत्तर मांगता
    कुछ न करता
    सिर के सौ टुकड़े तो करता !
    उत्तरदायित्वों से परे
    सबकुछ देखते रहना
    प्रश्न उठाना
    बहुत आसान है
    पर मैं जीवित होकर भी मूक हूँ
    या यूँ कहो- कर दिया गया हूँ
    कहीं कोई स्वतंत्रता शेष नहीं
    अपनी पहचान का दिखावा है
    ......
    सम्मान नहीं तो इस जन्मदिवस का क्या मूल्य है - तुम्हीं कहो

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    1. आदरणीया रश्मि प्रभा जी प्रणाम स्वीकार करें आपका संबल लेखन को गति प्रदान करता है .

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  6. उत्कृष्ट रचना ..बापू को नमन

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  7. गरीबों की आह?
    न फूलों की चाह?
    न काँटों की राह?
    अकेले-अकेले?
    राजन आज तो मौन तोड़ो
    मृत शिराओं में खून छोड़ो,,,

    वाह,,,इस अनूठी प्रस्तुति के लिये,रमाकांत जी हार्दिक बधाई,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,,

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  8. सुन्दर कृति...

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  9. प्रासंगिक और विचारणीय थोड़ी बहुत प्रतिमाओं को दिल/विचारों में स्थान देंगे आशा है.प्रशसनीय

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  10. उस महात्मा को मेरा भी शत-शत नमन!

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  11. अनुपम रचना..बापू को नमन

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  12. आपकी शानदार रचना और उसपर रश्मि दी की प्रतिक्रया के उपरांत हमारा कुछ भी कहना इस रचना के निहित भावों की बराबरी नहीं कर सकता.. आभार रमाकांत जी!!

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  13. बापू गांधी को एक अलग ढंग से दी गयी श्रद्धांजलि.
    सामायिक और सटीक प्रश्न लिए उत्तम रचना .

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  14. उत्कृष्ट रचना.सटीक पंक्तियाँ .

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