1
आसमां को देखकर भी
टेकरी पर चढ़ने के बाद ही
सब लोग
तुमसे
लगने लगते हैं?
क्षुद्र
2
बस तुम
एक वही काम
क्यों नहीं जानते?
जिसके लिये
परमात्मा ने तुम्हे जन्म दिया
3
अपना किया धरा छोड़कर
क्यों हर पल?
खोजते हो खुद को
औरों में
4
बरसों बरस
न सरोकार
सुख दुःख से
न उन लोगो से
जो तुम्हारे हैं
जिन्हें तुमने
अपना माना ही नहीं
कहने में शर्म नहीं?
मैं इस नगर का
वासी हूं?
और
ये मेरे
अपने हैं?
अष्टमी श्राद्ध पक्ष 2011
पूज्य बाबूजी स्व श्री जीत सिंह की स्मृति में
06.10.2012
चित्र गूगल से साभार
भावमय करते शब्द ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteभावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteसुन्दर भावो से संजोए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteभावभीनी रचना.
सादर
अनु
अगर सादगी से रहें ,जीवन कितना खूबसूरत है ...उलझने हम स्वयं ही तो पैदा करते हैं ...अपने लिए ...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
अपने ही काम तो नहीं करते .... दूसरों में भी स्वयं को ही खोजते हैं ... सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteगहरे जज्बात से संजोये हुई रचना |
ReplyDeleteसादर |
मर्मस्पर्शी भाव
ReplyDeleteएक नंबर और दो नंबर वाली क्षणिकायें बहुत शानदार लगीं।
ReplyDeleteपूज्य बाबूजी को हार्दिक श्रद्धांजलि।
बेगानों का अपना शहर.
ReplyDeleteअंतरतम से जन्मी रचनाएँ.. बाबूजी को सादर नमन!!
ReplyDeleteजीवन इतना complexed हिंदी में उलझा या इतने बेतरतीब तरह से बुना हुआ है कि तय नहीं हो पाता कि हम मेरी गो राउंड खेल रहे है या सांप -सीढ़ी. अपने को जानने. पाने और समझने के लिए संभवत जरुरी है खोज स्थगित करना. ऐसा कुछ जिसे हम अपने अन्दर नहीं खोज पाते उसे बाहर कैसे पाएंगे और पा भी लिया तो पह्चानेंगें कैसे
ReplyDeleteसर आपका मार्गदर्शन सदैव प्रेरणा देता है.
Deleteवाह! लाजवाब!!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ अची लगीं खासकर अंतिम .
ReplyDeleteआप के बाबूजी को मेरा भी श्रद्धा सुमन.
@त्रुटि सुधार ..अची को अच्छी पढ़ें.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजीवन एक संघर्ष है ओर चलते रहने का नाम ही जिन्दगी है | अच्छी रचना |
ReplyDeleteवाह।कमाल है।
ReplyDeleteकल 13/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सूक्ष्म भावनाओं को प्रकटित करतीं सुंदर लघु कविताएं।
ReplyDeleteस्मृति-कोष से निकली अनमोल रचना. बाबूजी को नमन..
ReplyDeletesundar kshanikayien
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