बदलते मुकाम पर
सिसकते दरकते रिश्ते
और स्वार्थ का लंबा सफर
विवादों का सिलसिला
षड़यंत्र का तानाबाना
सीमा के ऊपर नवीनतम
अनदेखा प्रस्ताव
या भविष्य का
दोहरा मानदण्ड
हमारा बेबुनियादी द्वन्द
तब निष्ठा की कसौटी पर
उठता गिरता सवाल क्यो?
जब लंगड़े टांगों पर
घिसटती परंपरा
जहा अंतर्द्वन्द
और लालसा, उपेक्षा के
चढते तेवर
ऐसे महासमर में जूझता
निरूपाय धनंजय
नई सुबह की तलाश में
ताकता क्षितिज को
रमाकांत सिंह 25/09/1995
सिसकते दरकते रिश्ते
और स्वार्थ का लंबा सफर
विवादों का सिलसिला
षड़यंत्र का तानाबाना
सीमा के ऊपर नवीनतम
अनदेखा प्रस्ताव
या भविष्य का
दोहरा मानदण्ड
हमारा बेबुनियादी द्वन्द
तब निष्ठा की कसौटी पर
उठता गिरता सवाल क्यो?
जब लंगड़े टांगों पर
घिसटती परंपरा
जहा अंतर्द्वन्द
और लालसा, उपेक्षा के
चढते तेवर
ऐसे महासमर में जूझता
निरूपाय धनंजय
नई सुबह की तलाश में
ताकता क्षितिज को
रमाकांत सिंह 25/09/1995
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