आंसू
जेठ की धूप में
लगने लगी ठंड
सूरज की रोशनी में भी
मन का अंधेरा
अचानक लगा
जस का तस
भौंरौं की गूंज से
नदी के कलकल में
पवन के झोंकों से
न तनिक स्पंदन
कोयल की कूक से
पत्तों के सरसराहट से
निर्जन बन में
मन की थकन से
भरी दोपहरी
चांद और तारे
लगे झिलमिलाने
खुले आसमां तले
शायद
वसुधा पर गिरे
अश्रू कणों ने
मन को भिगो दिया
रमाकांत सिंह 31/12/2009
चित्र गूगल से साभार
अच्छे भाव हैं भिगोते हुए।
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर ..अक्सर लोगों का अन ऐसे ही
ReplyDeleteआभार.
बहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुंदर भावों से सजी कविता!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
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