** जाने क्या ढूढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमे राख के इस ढेर में शोला है न चिंगारी है ** |
गतांक से आगे
अब तक आपने पढ़ा ...वेताल को गुड़ाखू की तलब फिर जागृत हो गई और वह कुएं की जगत पर गुड़ाखू घिसने बैठ गया........................
अब आगे
विक्रमार्क लघुशंका निवृति के बहाने थोड़ी दूर जाकर भूतकाल में जाने का सद्य: प्राप्त मन्त्र पढ़ने लगा।
तत्क्षण सब कुछ आँखों के सामने चलचित्र सा स्पष्ट हो गया। प्रसन्नता पूर्वक वह वेताल के पास जा पहुंचा और उसे कंधे पर लाद रेलवे के अनमैन्ड खोंड फाटक की ऒर चलना आरम्भ किया
राजन ने कहा हे वेताल
अब जो मैं कहता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो
इस जीव की पिछली पीढ़ी भारतीय रेल की सेवा करते देश के विभिन्न भू-भागों से गुजरी, वहां के निवासियों के गहन संपर्क में आई और इस जातक के जन्म में यथा शक्ति सभी भू -भागों के निवासियों ने अपना योगदान दिया। उसी के परिणामस्वरूप भारत की अनेकता में एकता जैसे शारीरिक लक्षणों से युक्त इस जीव का जन्म हुआ। कालान्तर में व्यक्तित्व विकास के अलग-अलग चरणों से गुजरते हुए रोजी रोजगार चलाने की प्रक्रिया में अचानक उसने पाया कि अंततः वह रचनाकार उर्फ़ पत्रकार जैसा कुछ बन गया।
तत्पश्चात यह जीव अलग-अलग पाला, खूंटा, मालिक, विचार ,निष्ठा बदलते हुए एक दिन सड़क पर छोटी सी भीड़ के पीछे जा लगा और संस्कृत कथा में पांडित्य प्राप्त अभिमानी चार ब्राह्मण युवकों सदृश्य " महाजनो येन गत: स पन्थाः" का अनुसरण करते हुए अपने को जीवन के अंतिम पड़ाव, श्मशान के वीराने में भ्रमित, चकित और अनाथ सा महसूस करते हुए खड़ा पाया। कुछ समय चहुँऒर देखने पर उसकी नज़र श्मशान में दूर खड़े कालिया नामक गर्दभ पर पड़ी, जिसे देखकर उसे उपरोक्त वर्णित ब्राह्मण युवकों की तरह एक दुसरे श्लोक-- निर्जन और वीराने में मिलने वाला जीव अपने बंधू के समान होता है का स्मरण हो आया, तत्काल ही उसके ह्रदय में किसी दैवीय प्रेरणा से बंधुत्व भाव जागृत हो गया। इस चौपाये के समीप पहुँच अपना परिचय देकर भातृभाव से पूछा-- हे रजक सहायक बन्धु श्रेष्ठ कृपाकर अपना परिचय सहित मार्गदर्शन दें।
हे वेताल,वैशाखनंदन ने अपना सक्षिप्त परिचय देते हुए जो कहा वह कथा इस प्रकार है---
यह कालिया गर्दभ अपने पुराने काम और मालिक को छोड़कर पलायित हो " द ग्रेट इन्डियन गंगा जमुना सर्कस" के विशाल पंडाल के समीप पहुँच अपना राग छेड़ने लगा। सर्कस मालिक के युवा बेटे को उसका यह राग नए किस्म के रिमिक्स की तरह जान पड़ा और उसने इस सड़कछाप जीव को अपने सर्कस में पनाह दे दी। सर्कस जब एक शहर से दुसरे शहर जाता तब कालिया बोझ ढ़ोता और सर्कस में दो करतबों के बीच फिलर के रूप में आकर दर्शकों को * गर्दभ रिमिक्स * सुनाकर उनका मनोरंजन करता। समय के साथ सर्कस के पुराने मालिक का इंतकाल हो गया और सर्कस को जगह -जगह ले जाने में बढ़ते खर्च के मद्देनजर मालिक के युवा पोते ने सर्कस को चिड़ियाघर में तब्दील कर स्थाई रूप से देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित कर दिया।
गुजरते समय के साथ कालिया को चिड़ियाघर का मैनेजर बना दिया गया किन्तु कालिए को वहां की तमाम सुविधाओं के बीच अपने शहर की याद सताती तो वह कुछ दिनों की छुट्टी लेकर यमुना और गंगा के तट पर बसे अपने पुराने शहर में बिताता और पुराने मित्रों से मिलता। उन दिनों को याद करते धोबी घाट पर जाता और तात्कालिक समय की यौवन से पूर्ण की गदहियों की चुहलबाजियों की मीठी यादों में खो जाता, विशेष कर रानी नामक गधी की जो प्रचुर यौवन से भरी और सर्वाधिक ज्ञानवान थी जिस पर कालिया जी जान से फ़िदा था पर वह घास नहीं डालती थी किन्तु प्रियदर्शन नामक एक अन्य गर्दभ को अपना दिल दे बैठी थी और उसे "गर्दभ कुल कमल दिवाकर" मानती थी, का स्मरण होता तो वह श्मसान रोदन को विवश हो जाता।
कभी कभी वह हरिश्चद्र घाट की ऒर निकल जाता और गला खोलकर अपने जन्मजात राग में रेंकने लगता ऐसे ही एक प्रवास पर सोनपुर के इस विचित्र जीव को उसने देखा, जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है, इस मानवीय लक्षणों के काकटेल सदृश्य दुर्लभ जीव को पाकर कालिये के ह्रदय में भी वैसा ही बंधुत्व भाव जगा जैसा सोनपुर के इस विचित्र जीव में जागृत हुआ था
इस सोनपुरिया जीव का परिचय जानने उपरांत कालिए के मन में यह विलक्षण विचार कौंधा कि यदि वह इस विचित्र जीव के साथ अपना राग मिलाकर रीमिक्स रिकार्ड करवाये तो यह नूतन प्रयोग निश्चय ही बिकाऊ होगा, भले टिकाऊ न हो।परन्तु यह गान इस जीव का अंतिम गान बना .चिड़ियाघर के मालिक ने इस जीव के साथ अपने पुराने कर्मचारी कालिए को भी बाहर का रास्ता दिखाया। कालिये के साथ उसकी यह जुगलबंदी टिकाऊ साबित सिद्ध नहीं हुई। अलग -अलग मीडिया ठिकानों से यह जीव मालिकों के साथ विश्वासघात के दंड स्वरुप नेपथ्य पर ** तात लात मोहिं मालिक मारा ** जैसे पाद प्रहार से प्रताड़ित हो हंकाला जाकर सोनपुरा के निकट नव निर्मित प्रदेश छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आकर मौत की पदचाप सुनते,वनों में चरने वाले पृथ्वी पर भार, हिरणों के स्वरुप अपने निरर्थक, दोगलेपन से भरे उपेक्षित जीवन का दंश झेलते अपना अंतिम समय बिताने लगा
अक्सर जब लोग इवनिंग वाक करते उसके घर के पास से गुजरते तो उन्हें ६0के दशक के पुराने गीत की पंक्तियाँ ** जाने क्या ढूढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमे राख के इस ढेर में शोला है न चिंगारी है **सुनाई पड़तीं
इस विचित्र जीव के जन्म रहस्य का इस प्रकार वर्णन कर राजन ने अपना उत्तर समाप्त किया ।
राजन का उत्तर समाप्त होते -होते वे रेलवे के मानवरहित खोंड फाटक तक आ पहुंचे।
अचानक खट्ट की आवाज़ हुई राजन ने झुक कर देखा तो गुड़ाखू की डिब्बी ज़मीन पर गिरी पड़ी थी।
वेताल ने कहा हे विक्रमार्क
मेरी सीमा यहीं समाप्त होती है। आगे दुसरे वेताल का क्षेत्र है और हम मानवों सदृश्य एक -दुसरे की सीमा का अतिक्रमण नहीं करते,गुड़ाखू और मानिकचंद के पाउच के लिए धन्यवाद,
***यू आर रियली जीनियस ***
कहकर सोनपुरा की रात के अंतिम पहर की निस्तबधता को अट्टहास से तोड़ता हुआ जूठही रेल्वे लेवल क्रासिंग के पास के बूढ़े पीपल की सबसे ऊंची डाल पर जाकर लटक गया
इति कथा।
क्या बात है... बेहतरीन.
ReplyDeleteरेल न जाने कितने कथाओं को जन्म देती है.
ReplyDeleteवेताल है या विकीलीक्स?
ReplyDeleteवाह !!! बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति,आभार रमाकांत जी
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति....
ReplyDeleteकुछ आज के जीवन से जुड़ी वेताल कथा .... बहुत उम्दा
ReplyDeleteसुंदर सन्देशप्रद कथा.
ReplyDeleteनवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.
इस कथा का पुनर्लेखन ... नए संधर्भ में ... नए विचार में ... नये माहोल में ...
ReplyDeleteकालिया गर्धभ .. उसकी पुरानी यादें ओर रीमिक्स का उम्दा तडका लगाया है आपने ...
आदरणीय कभी कभी किसी घटना विशेष का पुनर्लेखन और स्मृति का पुनरावलोकन खाते में अंकित होता है इसी क्रम में इस कथा का जन्म हुआ .आपने सराहा शुक्रिया ...
Deleteआपकी यह श्रृंखला पहले की कड़ियों से ही शानदार लगी थी.. और पुरानी श्रृंखला को इस तरह नए रूप में प्रस्तुत करना.. अद्भुत!!
ReplyDeleteयदा यदा हि धर्मस्य ... ..........तदात्मानं सृजाम्यहम के परिपालन में इस विक्रम वेताल श्रृखला का सृजन किया गया है आपने सराहा आभारी आपका मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित ...
Deleteयू आर रियली जीनियस बाबू साहब :)
ReplyDeleteआदरणीय आपका प्रेम छलक आया आभार
Deleteवाह ... एक बार फिर से आपको इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये
ReplyDeleteबधाई
सादर
बहुत रोचक कथा..
ReplyDeleteयह आधुनिक विक्रम वेताल कथायें अधिकाधिक दृष्टियों तक पहुँचनी चाहियें।
ReplyDeleteभाई साहब नमस्कार स्वीकारें आपकी आज्ञा शिरोधार्य
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