WE MUST FIND PLACE TO GROW AND BRANCH OUT |
गुरुकुल जहाँ बालक के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक विकास के साथ साथ आध्यात्मिक और नैतिक विकास के चतुर्दिक द्वार खुलते हैं। त्रेता में श्री राम सहित अनुज भरत, लक्ष्मण, सत्रुहन और द्वापर में कृष्ण और बलराम ने गुरु शिष्य परम्परा को आज तक जीवित रखा है। आदरणीय गुरु श्रेष्ठ वशिष्ठ, विश्वामित्र, परशुराम जी, बलराम जी, और अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन सहित सभी शिष्यों को मेरा प्रणाम स्वीकार हो।
आज एक बटन दबाओ कोई भी वर्ण लिख जाता है न समझने का झंझट न समझाने की परेशानी और कुछ आगे बढ़ने पर एक बटन दबाइए बहुत कुछ एक साथ छप जायेगा। तकनीक का विकास और ज्ञान का सत्यानाश एक साथ समान्तर क्रम में चलने लगा। मूलभूत बातें या कहूँ प्राथमिक मौलिक बातें अदृश्य होती जा रही हैं और तकनीक के फेर में हम भी इन बारीकियों को बिसराते चले जारहे हैं।
चलिए याद करके बताइए
*आपने बारह खड़ी अपने बच्चे को कब सिखलाया था?
*वर्णमाला के ५२ वर्ण कौन कौन से हैं?
*एक पाव पाव दो पाव अद्धा पहाड़ा जानते हैं?
*दादा जी के छाती पर सोकर सुनी अंतिम कहानी कौन सी है?
*रात खुली छत पर तारे कब गिने?
*अपने बच्चों को कभी एरावत हाथी की राह milky way बतलाया?
*हमने सिखलाया बच्चों को नदी की विपरीत धारा में तैरना?
*खुले मैदान के सूक्ष्म पौधों को पहचानना?
*हवा में उड़ते पखेरुओं के गान का स्वर भिन्नन?
*शेर से ज्यादा खतरनाक हम कब और कैसे?
*मनुष्य से ज्यादा मर्यादा पालन मूक जीवों में?
हमने आज बच्चों को विकसित कर दिया तकनीक में और हमें फ़ुर्सत मिली कि देख लें उन्होने इस सुविधा का कितना लाभ लिया या आप भी डूब गये उसमे दिशाहीन, लक्ष्य को भुलाकर।
मैं सोचता हूँ कि मैंने वक़्त को मुट्ठी में बाँध लिया है। जिस दिन चाहूँगा समेट लूँगा जहां अपनी आगोश में
लगभग ९० प्रतिशत लोग मेरी भांति सोचते है आपकी क्या राय है?
आपको पता है मेरी ढुलमुल राय?
क्रमशः
चित्र गूगल से साभार
08.04.2013
बहुत कुछ याद दिला दिया आज आपने भाई जी ...
ReplyDeleteआभार आपका !
सतीश भाई जी आपका एक कमेन्ट १००० के बराबर है प्रणाम स्वीकारें
Deleteआज कल माँ बाप के पास कहाँ वक़्त है ये सब सिखाने का .... हिन्दी की वर्णमाला तो बहुतों को याद भी नहीं होगी ।
ReplyDeleteआदरणीया संगीता स्वरुप जी चरण वंदना स्वीकारें
Deleteआधारभूत, प्राथमिक शिक्षा.
ReplyDeleteगुरुदेव राहुल कुमार सिंह जी ***तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा *** आपने जो सिखाया प्रशिक्षण के दौरान वही समर्पित आपको प्रणाम सहित .
Deletesatik lekh ....ab emotion ki jagah mashinon ne leli hai ...phalt: bacche men mashinon jaise hi sanskar aa rahe hain ....
ReplyDeleteआज हम खुद ही बदल गए है अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteहमने तो ये सब पढ़ा लिखा सीखा और सुना भी है,लेकिन ज्यादा तर लोग ये तालीम अपने बच्चों को नही दे पाए !!! सार्थक पोस्ट रमाकांत जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
तकनीक के फेर में हम भी इन बारीकियों को बिसराते चले जारहे हैं।
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने ...
आदरणीया सदा जी आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद सदा ही लिखने की प्रेरणा देता है चरण वंदना स्वीकारें
Deleteजड़ों को छोड़ उड़ान का असफल प्रयास कर रहा हे मानव, मूल छूटता जा रहा है और शाखाओं पर निभर होने की कोशिश.........
ReplyDeleteभाई जी आपका एक कमेन्ट १०० के बराबर है प्रणाम स्वीकारें
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन दिल दा मामला है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपके सज्जनता का ह्रदय से आभार व्यक्त किया जाता है ....
Deleteमनुष्य ने खुद को ही इतना व्यस्त कर लिया है की उसे भौतिकता के अलावा कुछ भान ही नहीं है ... तकनिकी का विकास शायद इसलिए तो नहीं हुआ था ...
ReplyDeleteमूलतः आज के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि हम मूल भुत बातों को या कहूँ नींव की जगह दीवारों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं
Deleteइस मशीनी युग में माँ बाप भी बच्चों से मशीनी उपलब्धि चाहते है ,उन्हें भावना से कोई मतलब नहीं
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
sach kah rahe hai babu sahab ham aadhunita ke chakar me apni jado ko bhulte ja rahe hai.badiya lekh
ReplyDeleteहमने बहुत कुछ खोया है और एक बड़ी कीमती विरासत से अपनी आने वाली पीढ़ी को वंचित किया है... उनमें से कुछ माणिक तो आपने गिना दिए... पर इसी बहाने अपने बचपन से मिल लिए हम!!
ReplyDeleteआदरणीय सलिल जी यही तो त्रासदी है परंपरागत शिक्षा को त्यागकर पूर्णतः आधुनिक शिक्षा को ही सब कुछ मान लेने की ......
Deleteऐसा भी नहीं है..जब बच्चे खुद किसी समस्या या उलझन में फंसते हैं तो भावनाओं की मदद लेकर ही अपने-आपको मुक्त भी करते हैं जो ऊपर से नहीं दिखता है पर बारीकी से देखने पर पता चलता है.
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