गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Monday 8 April 2013

गुरुकुल / गुरु


WE MUST FIND PLACE TO GROW AND BRANCH OUT 


गुरुकुल जहाँ बालक के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक विकास के साथ साथ आध्यात्मिक और नैतिक विकास के चतुर्दिक द्वार खुलते हैं। त्रेता में श्री राम सहित अनुज भरत, लक्ष्मण, सत्रुहन और द्वापर में कृष्ण और बलराम ने गुरु शिष्य परम्परा को आज तक जीवित रखा है। आदरणीय गुरु श्रेष्ठ वशिष्ठ, विश्वामित्र, परशुराम जी, बलराम जी, और अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन सहित सभी शिष्यों को मेरा प्रणाम स्वीकार हो।

आज एक बटन दबाओ कोई भी वर्ण लिख जाता है न समझने का झंझट न समझाने की परेशानी और कुछ आगे बढ़ने पर एक बटन दबाइए बहुत कुछ एक साथ छप जायेगा। तकनीक का विकास और ज्ञान का सत्यानाश एक साथ समान्तर क्रम में चलने लगा। मूलभूत बातें या कहूँ प्राथमिक मौलिक बातें अदृश्य होती जा रही हैं और तकनीक के फेर में हम भी इन बारीकियों को बिसराते चले जारहे हैं।

चलिए याद करके बताइए
*आपने बारह खड़ी अपने बच्चे को कब सिखलाया था?
*वर्णमाला के ५२ वर्ण कौन कौन से हैं?
*एक पाव पाव दो पाव अद्धा पहाड़ा जानते हैं?
*दादा जी के छाती पर सोकर सुनी अंतिम कहानी कौन सी है?
*रात खुली छत पर तारे कब गिने?
*अपने बच्चों को कभी एरावत हाथी की राह milky way बतलाया?
*हमने सिखलाया बच्चों को नदी की विपरीत धारा में तैरना?
*खुले मैदान के सूक्ष्म पौधों को पहचानना?
*हवा में उड़ते पखेरुओं के गान का स्वर भिन्नन?
*शेर से ज्यादा खतरनाक हम कब और कैसे?
*मनुष्य से ज्यादा मर्यादा पालन मूक जीवों में?

हमने आज बच्चों को विकसित कर दिया तकनीक में और हमें फ़ुर्सत मिली कि देख लें उन्होने इस सुविधा का कितना लाभ लिया या आप भी डूब गये उसमे दिशाहीन, लक्ष्य को भुलाकर।
मैं सोचता हूँ कि मैंने वक़्त को मुट्ठी में बाँध लिया है। जिस दिन चाहूँगा समेट लूँगा जहां अपनी आगोश में
लगभग ९० प्रतिशत लोग मेरी भांति सोचते है आपकी क्या राय है?
आपको पता है मेरी ढुलमुल राय?

क्रमशः
चित्र गूगल से साभार
08.04.2013

22 comments:

  1. बहुत कुछ याद दिला दिया आज आपने भाई जी ...
    आभार आपका !

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    1. सतीश भाई जी आपका एक कमेन्ट १००० के बराबर है प्रणाम स्वीकारें

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  2. आज कल माँ बाप के पास कहाँ वक़्त है ये सब सिखाने का .... हिन्दी की वर्णमाला तो बहुतों को याद भी नहीं होगी ।

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    1. आदरणीया संगीता स्वरुप जी चरण वंदना स्वीकारें

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  3. आधारभूत, प्राथमिक शिक्षा.

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    1. गुरुदेव राहुल कुमार सिंह जी ***तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा *** आपने जो सिखाया प्रशिक्षण के दौरान वही समर्पित आपको प्रणाम सहित .

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  4. satik lekh ....ab emotion ki jagah mashinon ne leli hai ...phalt: bacche men mashinon jaise hi sanskar aa rahe hain ....

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  5. आज हम खुद ही बदल गए है अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे,बेहतरीन प्रस्तुति.

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  6. हमने तो ये सब पढ़ा लिखा सीखा और सुना भी है,लेकिन ज्यादा तर लोग ये तालीम अपने बच्चों को नही दे पाए !!! सार्थक पोस्ट रमाकांत जी,,,

    RECENT POST: जुल्म

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  7. तकनीक के फेर में हम भी इन बारीकियों को बिसराते चले जारहे हैं।
    बिल्‍कुल सच कहा आपने ...

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    1. आदरणीया सदा जी आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद सदा ही लिखने की प्रेरणा देता है चरण वंदना स्वीकारें

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  8. जड़ों को छोड़ उड़ान का असफल प्रयास कर रहा हे मानव, मूल छूटता जा रहा है और शाखाओं पर निभर होने की कोशिश.........

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  9. भाई जी आपका एक कमेन्ट १०० के बराबर है प्रणाम स्वीकारें

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  10. आज की ब्लॉग बुलेटिन दिल दा मामला है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. आपके सज्जनता का ह्रदय से आभार व्यक्त किया जाता है ....

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  11. मनुष्य ने खुद को ही इतना व्यस्त कर लिया है की उसे भौतिकता के अलावा कुछ भान ही नहीं है ... तकनिकी का विकास शायद इसलिए तो नहीं हुआ था ...

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    1. मूलतः आज के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि हम मूल भुत बातों को या कहूँ नींव की जगह दीवारों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं

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  12. इस मशीनी युग में माँ बाप भी बच्चों से मशीनी उपलब्धि चाहते है ,उन्हें भावना से कोई मतलब नहीं
    LATEST POSTसपना और तुम

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  13. sach kah rahe hai babu sahab ham aadhunita ke chakar me apni jado ko bhulte ja rahe hai.badiya lekh

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  14. हमने बहुत कुछ खोया है और एक बड़ी कीमती विरासत से अपनी आने वाली पीढ़ी को वंचित किया है... उनमें से कुछ माणिक तो आपने गिना दिए... पर इसी बहाने अपने बचपन से मिल लिए हम!!

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    1. आदरणीय सलिल जी यही तो त्रासदी है परंपरागत शिक्षा को त्यागकर पूर्णतः आधुनिक शिक्षा को ही सब कुछ मान लेने की ......

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  15. ऐसा भी नहीं है..जब बच्चे खुद किसी समस्या या उलझन में फंसते हैं तो भावनाओं की मदद लेकर ही अपने-आपको मुक्त भी करते हैं जो ऊपर से नहीं दिखता है पर बारीकी से देखने पर पता चलता है.

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