गुरुकुल ५

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Thursday, 11 April 2013

गुरुकुल/ गुरु २

मेरी मानस पुत्री श्री मति आभा सिंह ने कहा सर रिचार्ज शिक्षक क्यों नहीं हो सकते?


कहाँ गये वो लोग? बड़ा दर्द होता है उन्हें खोकर उनकी कमी का एहसास क्या कहें? कोई पूरी कर सकता है उनका रिक्त स्थान? कैसे गुरु द्रोण या परशुराम की निष्ठा, कर्तव्य परायणता, समर्पण, सेवा पर हम प्रश्न चिन्ह लगायें यही आस्था गुरु शिष्य परम्परा के मील का पत्थर बन युगों से हमारा मार्गदर्शन कर रहा है और हम आज भी उन्हें प्रातः स्मरण कर अपना जीवन धन्य मानते हैं।

*एक फकीर ने मुझसे कोरबा विद्यालय जाते वक़्त ट्रेन में पूछा बाबू क्या करते हो? मैंने कहा बच्चों को पढाता हूँ। गुरूजी हो। ज़रा बतलाओ गुरु कैसा होना चाहिये? तपाक से उत्तर दे दिया दीये की भांति। फकीर ने कहा लेकिन वह तो अपने नीचे अन्धकार रखता है किसी को पूर्ण ज्ञान दे पायेगा या तुम्हारे अनुसार पूर्ण प्रकाशित कर पायेगा? उचित गुरु हो सकता है? विचार करना

**एक बार फकीर ने फिर मुझसे कहा चलो बतलाओ गुरु और कैसा होना चाहिये इस बार विचार कर कहा चन्दन की तरह। क्यों बाबू? मैंने कहा चन्दन की लकड़ी के साथ किसी भी अन्य लकड़ी को रख दें वह भी चन्दन की भांति सुवासित हो जाता है। फकीर ने झट एक दूसरा प्रश्न दाग दिया गुरु जी आपने कभी विचार किया चन्दन की खुश्बू कौन फैलाता है? हवा। फिर खुश्बू बिखराने वाला माने शिष्य हवा की तरह चंचल और तरल, पारदर्शी होगा कितना कठिन होगा ऐसा शिष्य खोजना और शिक्षित कर पाना। ज़रा विचार करो कर्ण और एकलव्य को शिक्षा किस प्रकार प्राप्त हुई और कर्ण क्यों श्राप ग्रस्त हो गया?

***इस बार फकीर ने मेरे माथे पर पड़ते बल को देखकर कहा चलो एक और इन्ही सामान उच्च गुरु की तलाश करें? कुछ सोचकर कह दिया पारस पत्थर की तरह जो लोहे को सोना बना दे। वाह क्या गुरु सुझाया, किन्तु  यहाँ भी विडम्बना देखो जिसमे परिवर्तन करना है वह दृढ, ठोस, पहले से ही निश्चित आकार , आयतन आदि गुणधर्म युक्त शिष्य और गुरु अपने ही समुदाय [ पत्थर ] के लिये अनुपयोगी।

*फकीर ने कहा गुरु श्रेष्ठ कौन?
*किस गुरु से शिक्षा लें?
*अवगुण युक्त गुरु ज्ञान के लिए उत्तम?
*गुरु के गुण या अवगुण शिष्य में आरोपित नहीं होंगे?
*ऐसी स्थिति में गुरु कैसा होना चाहिए?

मैं हतप्रभ रह गया।
फकीर ने कुछ रुककर कहा
तुमने कभी कौवा को हमारी भांति बुढा होकर या बीमार होकर मरते देखा है?
नहीं न। तब ये कहां जाते हैं? कहाँ मरते होंगे या नया यौवन कैसे मिलता होगा?
मेरे गुरु से सुने मिथक का तुम भी आनंद लो
कौवा कहाँ जाते है? ये किष्किन्धा पर्वत से टकराकर पुनः नव जीवन प्राप्त कर लौट आते है।

फकीर ने तड़ से फिर पुछ लिया तुमने कभी भौंरा का छोटा बच्चा देखा है?
मेरे गृह ग्राम मुलमुला में घर से लगा लगभग ४५ एकड़ का तालाब बंधवा कमल से सुशोभित है
स्वाभाविक है भौंरों का गुनगुनाना किन्तु आज तक नहीं देख पाया नन्हा भौंरा।
सुनो भौंरा किसी भी कीड़े को पकड़कर अपने घरौंधे में ले जाता है और उसके कान में गुनगुनाता है और उसकी गुनगुनाहट से वह कीड़ा भौंरा में परिवर्तित हो जाता है, घरौंधे से कीड़ा नहीं भौंरा निकलता है।

मैं सोचता हूँ शिष्य किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग, लिंग, रंग,और वर्ण का हो गुरु ऐसा श्रेष्ठ हो जो  बिन भेदभाव ज्ञान देकर अपनी भांति ज्ञानवान बना दे जो विश्व बंधुत्व को पोषित और पल्लवित करे।

कहानी सुनाकर फकीर आगे बढ़ गया उसे प्रणाम कर मैं आपसे साझा कर बैठा।   
                           
११अप्रेल २०१३
समर्पित मेरी मानस पुत्री श्री मति आभा सिंह को
चित्र गूगल से साभार   

17 comments:

  1. बने परीक्षा ले डारिस गुरुजी के, फ़कीर ह। किताबी गियान ले घुमक्कड़ी गियान आगर होथे ।

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    1. आपकी घुमक्कड़ी और यायावरी के संगत को समर्पित दर्शन आपको ही ...

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  2. कौन धूप में,जल को लाकर
    सूखे होंठो, तृप्त कराये ?
    प्यासे को आचमन कराने
    गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?
    नंगे पैरों, गुरु दर्शन को,आये थे मन में ले प्रीत !
    सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !

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    1. सतीश सक्सेना भाई साहब आपने कथा को मूर्त रूप दे दिया प्रणाम स्वीकारें

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!

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  4. भौरे और कौवे के बारे में पहली बार ही जाना इस कथा से .... विचारणीय पोस्ट

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  5. सच्चा गुरु मिल पाना जितना कठिन है उतना ही कठिन है एक अच्छे शिष्य का मिल पाना.
    फ़कीर की बातें बड़ी सच्ची लगीं.
    एक अच्छी पोस्ट.

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    1. सुप्रभात सहित प्रणाम स्वीकारें आपने सच कहा .....सच्चे शिष्य के मिल जाने पर गुरु ज्ञान को शिष्य पर एकतरफा उड़ेल देता है, तभी तो एकलव्य का अंगूठा मांग लिया गया और अर्जुन परम प्रिय शिष्य

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  6. जिस प्रकार से अच्‍छा शिष्‍य मिलना कठिन है उसी प्रकार अच्‍छा गुरु मिलना भी कठिन है। बहुत अच्‍छी जानकारी दी हैं।

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  7. गुरु को किसी परिभाषा में बांधना उतना ही कठिन है जितना परमात्मा को..सुंदर प्रस्तुति !

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  8. गुरू-फकीर, फकीर-गुरू.

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    1. सर जी एक छोटी सी भेंट आपके शिष्य की ओर से स्वीकार करें प्रणाम सहित अर्पित ...

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  9. बहुत विचारणीय सार्थक अभिव्यक्ति...आज के समय में सच्चा गुरु और शिष्य मिलना निश्चय ही कठिन है...

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  10. वाकई गुरु को परिभासित करना कठिन है. सुन्दर लेख.

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  11. वाह! बहुत खूब | अत्यंत सुन्दर रचना | नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  12. एक अनुरोध. इस बार उस फ़क़ीर(?) से मुलाकात हो तो जरुर पूछियेगा -- फ़क़ीर कौन और कैसा होना चाहिए ?

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