चिराग आँधियों में ही जलाया जाये हौसला दिल में पालकर हर पल
चलो खोजें मिलकर जहां ऐसा जहां चिराग से चिराग जलाया जाये
मिल जाये गर एक हसीं मौका यूँ ही तेरे संग राह पर चलते चलते
करें सितम मुफ्त में किसी हंसते बच्चे को चलो आज रुलाया जाये
लोग खुश हैं मुफलिसी, दोज़ख में भी धूप साये में भी मस्त मौला हम
बंद कर आँख गाफिल जिन्दगी से भी दरख़्त दर्द का एक लगाया जाये
अमन चैन से सोते हैं पत्थरों पर नर्म तकिया बनाकर हाथ सिर के नीचे
मुख़्तसर ज़िन्दगी से कभी बातें कर किसी आबाद घर को जलाया जाये
न कर फैसला ज़माने की खातिर कौन होता है तू तेरा वजूद इम्तहां लेगा
तुम्हारा ही अक्श नज़र आयेगा तुम्हें आईना जब भी तुम्हे दिखाया जाये
लोग क्यूं खुश हैं ज़माने को बसाने में चलो पूरी बस्ती को उजाड़ा जाये
इंसानियत ओढ़कर बहुत जी चुके अब शैतानियत को आजमाया जाये
२० अक्टूबर २०११
तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
वंदना गुप्ता जी प्रणाम आपने रचना को सम्मान दिया आभारी
Deleteतुम्हें आईना जब भी तुम्हे दिखाया जाये ...........
ReplyDeleteबहुत खूब कहा आपने इन पंक्तियों में
सादर
चिराग आँधियों में ही जलाया जाये हौसला दिल में पालकर हर पल
ReplyDeleteचलो खोजें मिलकर जहां ऐसा जहां चिराग से चिराग जलाया जाये
घना अँधेरा है, बहुत जरुरी है हौसलों के चिराग जलाये रखना... सुन्दर भाव... आभार
हौसला माँ, बहन, बेटी, और रिश्तों से मिलता है आपने सराहा आपका स्नेह बना रहे आभारी ...
Deleteन कर फैसला ज़माने की खातिर कौन होता है तू तेरा वजूद इम्तहां लेगा
ReplyDeleteतुम्हारा ही अक्श नज़र आयेगा तुम्हें आईना जब भी तुम्हे दिखाया जाये
...बहुत खूब! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
"तुम्हारा ही अक्श नज़र आयेगा तुम्हें आईना जब भी तुम्हे दिखाया जाये" सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteखतरनाक इरादे.
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
क्या-क्या गज़ब करने को उतारू हैं - पर जिसे आईना दिखाना चाहते हैं आप उसकी आँखें बंद हैं.
ReplyDeleteबहुत लाजबाब, बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति..!!!
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
बहुत खूब! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteउत्साह से लबरेज ,वास्तविकता से भरा हुआ.. बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteप्रभावशाली अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
उफ़..कितने दर्द से उपजी पंक्तियाँ..
ReplyDeleteबहुत खूब!प्रभावशाली अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमानस के अंतर से निकली पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteलोग क्यूं खुश हैं जमाने को बसाने में चलो पूरी बस्ती को उजाड़ा जाये
ReplyDeleteइंसानियत ओढ़कर बहुत जी चुके अब शैतानियत को आजमाया जाये
जमाने के दर्द को बयां करती पंक्तियां।
करें सितम मुफ्त में किसी हंसते बच्चे को चलो आज रुलाया जाये ...
ReplyDeleteमासूम सी चाह लिए ... अगर जीवन ऐसे ही बीतता रहे तो ये जीवन तो सफल है ...
लाजवाब ..
" क्षीणा नरा: निष्करुणा भवन्ति ।"
ReplyDeleteऔर हर अच्छाई के लिए एक सूली बनाया जाए..वाह!
ReplyDeleteमिल जाये गर एक हसीं मौका यूँ ही तेरे संग राह पर चलते चलते
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाता बाबू साहब
सर जी आपने सराहा लिखना रास आया ह्रदय से आभार आपका
Deleteकहां संतुलित हो पाया मन कौन भला इसको समझाये
ReplyDeleteमांगे से क्या मोती मिलता है यही बात यह समझ न पाये ।
जो चन्चल है वही तो मन है ।
ReplyDelete''मंदिर मैं न सही किसी अँधेरे नुक्कड़ में चिराग जलाया जाए.
ReplyDeleteघी का न हो तो कड़वे तेल का हो ये चिराग,पर जले तो सही ,
नुक्कड़ में छाया अँधेरा जब छटेगा, तब मन का अँधेरा मिटेगा..!