गुरुकुल ५

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Tuesday, 21 February 2012

दृष्टिहीनता


संक्रमित अतीत का गूंगापन
सन्नाटे की जगत पर
चीखता क्रांति के इंतजार में
खुरदुरी हथेली पर
चिकने तस्वीर की कल्पना में
इतराता अपनी दृष्टिहीनता पर,




वाद-प्रतिवाद में घिरा
अस्तित्व रक्षार्थ
अकेलेपन की आंच सहते
समग्रता से
अपनी परिधि लांघकर,

नंगे पांव निःशब्द मूक
रेंगते बेचैन
शापग्रस्त कीड़े की तरह
सहजता से अस्वीकार करता
अपनी सर्द अस्मिता

रमाकांत सिंह 5/11/1995
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. सजग, जागृत नजरें.

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  2. प्रभावशाली रचना......

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  3. आपकी ये रचना कल चर्चा मंच पे भी रहेगी ,

    सादर

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  4. आपकी ये रचना कल चर्चा मंच पे भी रहेगी ,

    सादर

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  5. वाह!!!
    लाजवाब....

    सादर.

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  6. आपकी और भी रचनाये पढ़ी...
    बेहतरीन लेखन..
    बधाई..

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  7. बहूत हि सुंदर ,
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ती है....

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