गुरुकुल ५

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Tuesday, 14 February 2012

ऋतु



नन्ही सी गुडि़यों की रानी
आई है परियों की नानी

नित आती रहें चंदा की किरण
बन्नों बन जाना तू चंदन
महके तुमसे गुलशन-गुलशन
खुश्बु से झूमे सारा चमन
लाई सौगातें मनमानी
ऋतिुओं की रानी दिवानी

कुंदन सा चमके तेरा बदन
लोरी गायें ये मस्त पवन
तेरा दामन सजाये ये सावन
ठुमके गाये आंगन-आंगन
ओढ़े तू नई चुनरी धानी
जैसे मौजें ये मस्तानी

मेरे सपनों का तू सिरजन
मेरे आंचल का तू है धन
सुरज से तेरा हो बंधन
राहों में बिखरें रोज सुमन
गंगा की धारा हो जीवन
जगती सा पावन तेरा मन

रमाकांत सिंह 14/04/1978 दंतेवाड़ा
 सौभाग्यकांक्षी ऋतु सूद आत्मजा श्री महेंद्र सूद
के जन्म के 6वें दिन के अवसर पर सस्नेह समर्पित
दंतेवाड़ा जिला बस्तर छत्तीसगढ़

7 comments:

  1. वाह, सुंदर... भावपूर्ण.

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  2. मेरे सपनों का तू सिरजन
    मेरे आंचल का तू है धन

    सुन्दर रचना...
    हार्दिक बधाई...

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  3. आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का बहुत- बहुत आभार , यह स्नेह निरंतर मिलता रहे.
    सुन्दर सृजन , बधाई.

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  4. मेरे सपनों का तू सिरजन
    मेरे आंचल का तू है धन

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  5. बहुत खूबसूरत रचना ... उस नन्ही परी को आशीर्वाद

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  6. कोमल, प्यारी सी रचना .अच्छी लगी..

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  7. मेरे सपनों का तू सिरजन
    मेरे आंचल का तू है धन
    सुरज से तेरा हो बंधन
    राहों में बिखरें रोज सुमन
    गंगा की धारा हो जीवन
    जगती सा पावन तेरा मन

    पावन कर देने वाली पंक्तियाँ...बहुत सुंदर कविता !

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