बचपन में मां ने कई कहानियां सुनाई। उनमें से एक कहानी खरगोश और कछुआ की दौड़ की कहानी आज भी मां बड़े प्रेम से सुनाती है। खरगोश तेज दौड़कर भी प्रतियोगिता हार जाता है और कछुआ धीरे-धीरे चलने के बाद भी जीत जाता है। इस कहानी का रास्ता शायद कथाकार ने तय किया था, लेकिन कहानी यहां समाप्त नहीं होती ऐसा मामा ने कहा।
मन में जिज्ञासा हुई तब क्या हुआ होगा?
इस बार लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता खरगोश ने निश्चित किया। फिर क्या था, पहाड़ी रास्तों में कछुआ बार-बार फिसलता गया और खरगोश आसानी से उछलता कूदता मंजिल तक पहुंच गया। कछुआ हार गया किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। कहानी यहां भी कहां समाप्त हुई?
इस बार लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता कछुआ ने निश्चित किया, फिर क्या था कछुआ नदी में उतरकर जलमार्ग से तैरकर अपनी मंजिल तक पहुंच गया। अब की बार खरगोश देखता रह जाता है।
कहानी चाहे मगर और बंदर की हो या सारस और लोमड़ी की। या फिर कहानी बहेलिया और चिडि़या की हो। जीवन से जुड़ी कहानियां अंतहीन होती हैं, कभी कोई मंजिल तक जल्दी पहुंच जाता है तो कोई रास्ते में सोकर पीछे रह जाता है।
आप हर हाल में मंजिल तक पहुंचें इस आशा में ... ... ...
रमाकांत सिंह अपनी मां के साथ आपकी बाट जोहता 14/02/2012
पुरानी कहानियों से कुछ अलग किस्म का नया बोध.
ReplyDeleteइस सार्थक प्रविष्टि के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteऐसी कहानियाँ हमारी रागिन में बसी हुई है.. अति सुन्दर..
ReplyDeleteवाह ! बाल कहानियाँ भी कितना बोध कराती हैं. आभार!
ReplyDeleteखरगोश का संगीत राग रागेश्री
ReplyDeleteपर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत
में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत
वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
मिलती है...
Here is my web-site ... संगीत