अनचाहे मूल्य टेढ़ी राहें
अपने -अपने
बोझ तले
संघर्ष सपने और अरमान
संकुचित दायरे में कैद
अनदेखे हक का सवाल,
और मैले फटे आंचल पर
अलविदा कहते गहरे छींटे
दलदल में धंसा सराबोर
आदि से अंत,
बंदिशों की गंभीरता संग
रिश्तों का कसता सिकंजा
प्रतीक्षारत् जर्जर
नये मूल्य नई राहें
भरपाई की कोशिश में
बनते बिगड़ते
रमाकात सिंह 18/10/1995
सही कहा बाबू साहब
ReplyDeleteरिश्तों के कसते शिकंजे के बीच नए मूल्य नई राहें. सुन्दर पंक्तियाँ. स्वागत.
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
हाँ , लचीले मूल्य..सुन्दर लिखा है..
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