गुरुकुल ५

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Tuesday, 7 February 2012

राहें


अनचाहे मूल्य टेढ़ी राहें
अपने -अपने
बोझ तले
संघर्ष सपने और अरमान

संकुचित दायरे में कैद
अनदेखे हक का सवाल,
और मैले फटे आंचल पर
अलविदा कहते गहरे छींटे
दलदल में धंसा सराबोर
आदि से अंत,

बंदिशों की गंभीरता संग
रिश्तों का कसता सिकंजा
प्रतीक्षारत् जर्जर
नये मूल्य नई राहें
भरपाई की कोशिश में
बनते बिगड़ते

रमाकात सिंह 18/10/1995

4 comments:

  1. रिश्तों के कसते शिकंजे के बीच नए मूल्य नई राहें. सुन्दर पंक्तियाँ. स्वागत.

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  2. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

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  3. हाँ , लचीले मूल्य..सुन्दर लिखा है..

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