तनहा तसव्वुर में बिंधकर कहीं खो गया
जैसे साहि़ल पे उठता सहर सो गया
देखा कभी रात में उठता कभी भोर में
चंचल-चंचल लहर नयनों के इन कोर में
अश्को-तबस्सुम सा जैसे बयां हो गया
तनहा खयालों में बिंधकर कहीं खो गया
बीती हुई रात से जुड़कर कई हादसे
बिखरे नये ख्वाब में मिलकर गले आज से
भूले नज़़्मों की तरह जैसे धुआं हो गया
तनहा खयालों में बिंधकर कहीं खो गया
गाहे देती सदा ख्वाबों खयालों में
लम्हे तबस्सुम के ग़़म के हिज़ाबों में
मुड़कर सरे-राह से जैसे बयां हो गया
तनहा तसव्वुर में बिंधकर कही खो गया
रमाकांत सिंह 15/07/1978 दंतेवाड़ा
जैसे साहि़ल पे उठता सहर सो गया
देखा कभी रात में उठता कभी भोर में
चंचल-चंचल लहर नयनों के इन कोर में
अश्को-तबस्सुम सा जैसे बयां हो गया
तनहा खयालों में बिंधकर कहीं खो गया
बीती हुई रात से जुड़कर कई हादसे
बिखरे नये ख्वाब में मिलकर गले आज से
भूले नज़़्मों की तरह जैसे धुआं हो गया
तनहा खयालों में बिंधकर कहीं खो गया
गाहे देती सदा ख्वाबों खयालों में
लम्हे तबस्सुम के ग़़म के हिज़ाबों में
मुड़कर सरे-राह से जैसे बयां हो गया
तनहा तसव्वुर में बिंधकर कही खो गया
रमाकांत सिंह 15/07/1978 दंतेवाड़ा
तन्हाई में हुए अनुभव को बेहतर शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है ...!
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteदेखा कभी रात में उठता कभी भोर में
ReplyDeleteचंचल-चंचल लहर नयनों के इन कोर में
अश्को-तबस्सुम सा जैसे बयां हो गया
बढ़िया अभिव्यक्ति....
हार्दिक बधाईयाँ.
बीती हुई रात से जुड़कर कई हादसे
ReplyDeleteबिखरे नये ख्वाब में मिलकर गले आज से
भूले नज़्मों की तरह जैसे धुआं हो गया
तनहा खयालों में बिंधकर कहीं खो गया
क्या बात है !!
बहुत सुंदर भाव !!
सुंदर शब्द, कोमल भाव !
ReplyDeleteखुदगर्ज थी सबा भी
ReplyDeleteखुदगर्ज थी शब भी
मैं तन्हाई ओढ़े जीता रहा ....
अनुपम हव संयोजन
ReplyDeleteबहूत हि बढीया...