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मांदर की थाप पर
नाचता युवा अभिजात्य वर्ग
कोलाबेरी डी का अर्थ
जानता है?
किन्तु नाच उठा
संग में झूम गया
पूरा संसार
शायद
शब्द और अर्थ
आत्मा को शरीर से
कर देते हैं एकाकार?
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आंसूओं और ख़ुशी का मेल भी
भीगो देता है मन को
सन्देशा लेकर आता है
जीवन का
और कभी कभी
मृत्यु का
बावरा मन
कहाँ जान पाता है
हर्ष और विषाद
या दर्द का भेद
चित्र गूगल से साभार
06.07.2012
सुन्दर पंक्तियाँ। "कोलाबेरी डी" के बदले "ऐसी की तैसे रे" भी होता तो कोई फरक नहीं पड्ता. शब्द और अर्थ का कोई लेना देना नहीं दिखता.
ReplyDeleteशायद
ReplyDeleteशब्द और अर्थ
आत्मा को शरीर से
कर देते हैं एकाकार?
बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteबावरा मन
ReplyDeleteकहाँ जान पाता है
हर्ष और विषाद
या दर्द का भेद sacchi bat gahan anubhooti se bharpoor ....
बहुत खूब ..
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteऐसा कई बार होता है जब भाषा और ध्वनियॉं आवश्यक नहीं रह जातीं। तब 'अपने मन से जानियो, मेरे मन की बात' वाली उक्ति लागू होती है। ।
ReplyDeleteआपकी इस कविता में मुझे यही बात बनुभव हुई।
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकोलावेरी डी का अर्थ है-कोई लफड़ा नहीं
ReplyDeletethough i am not sure confirm from authentic source
badiya hai sir ji...............
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपढ़ कर कान में कोलावेरी बजने लगा.
ReplyDeleteबावरा मन
ReplyDeleteकहाँ जान पाता है
हर्ष और विषाद
या दर्द का भेद.
बहुत बढ़िया.
आंसूओं और ख़ुशी का मेल भी
ReplyDeleteभीगो देता है मन को
सन्देशा लेकर आता है
जीवन का
और कभी कभी
मृत्यु का
अद्भुत भाव...
इस दर्द, विषाद और खुशियों में आंसुओं की पहचान होना आसां नहीं ...
ReplyDeleteनम ही जान समता है इस भेद को ...
बहुत बढ़िया..
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