गुरुकुल ५

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Saturday, 4 May 2013

कोलाबेरी डी


*
मांदर की थाप पर
नाचता युवा अभिजात्य वर्ग
कोलाबेरी डी का अर्थ
जानता है?
किन्तु नाच उठा
संग में झूम गया
पूरा संसार
शायद
शब्द और अर्थ
आत्मा को शरीर से
कर देते हैं एकाकार?

**
आंसूओं और ख़ुशी का मेल भी
भीगो देता है मन को
सन्देशा  लेकर आता है
जीवन का
और कभी कभी
मृत्यु का
बावरा मन
कहाँ जान पाता है
हर्ष और विषाद
या दर्द का भेद


चित्र गूगल से साभार
06.07.2012

17 comments:

  1. सुन्दर पंक्तियाँ। "कोलाबेरी डी" के बदले "ऐसी की तैसे रे" भी होता तो कोई फरक नहीं पड्ता. शब्द और अर्थ का कोई लेना देना नहीं दिखता.

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  2. शायद
    शब्द और अर्थ
    आत्मा को शरीर से
    कर देते हैं एकाकार?

    बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

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  3. वाह बहुत खूब !

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  4. बावरा मन
    कहाँ जान पाता है
    हर्ष और विषाद
    या दर्द का भेद sacchi bat gahan anubhooti se bharpoor ....

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  5. वाह ... बेहतरीन

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  6. ऐसा कई बार होता है जब भाषा और ध्‍वनियॉं आवश्‍यक नहीं रह जातीं। तब 'अपने मन से जानियो, मेरे मन की बात' वाली उक्ति लागू होती है। ।

    आपकी इस कविता में मुझे यही बात बनुभव हुई।

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  7. बहुत बढ़िया..

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  8. गहन अभिव्यक्ति।

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  9. कोलावेरी डी का अर्थ है-कोई लफड़ा नहीं

    though i am not sure confirm from authentic source

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. पढ़ कर कान में कोलावेरी बजने लगा.

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  12. बावरा मन
    कहाँ जान पाता है
    हर्ष और विषाद
    या दर्द का भेद.

    बहुत बढ़िया.

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  13. आंसूओं और ख़ुशी का मेल भी
    भीगो देता है मन को
    सन्देशा लेकर आता है
    जीवन का
    और कभी कभी
    मृत्यु का
    अद्भुत भाव...

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  14. इस दर्द, विषाद और खुशियों में आंसुओं की पहचान होना आसां नहीं ...
    नम ही जान समता है इस भेद को ...

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  15. बहुत बढ़िया..

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