I LOVE YOU SO MUCH |
*
एस. एम. एस. किया
आई लव यू सो मच
फिर रिंग किया
बड़ी बेचैनी से
प्रिये
तुम्हे एस. एम. एस. मिला?
ये पूछना प्रेमिका से ही
भरोसा उठ गया?
**
संविधान के नियमानुसार
चुना जिसे हमदर्द मानकर
सुख दुःख को बांटने
प्रजा तंत्र की राह पर
फिर ये कहना
सरकार चलेगी?
क्या खुद पर से उठ गया विश्वास?
***
चौराहे पर लगाकर सिगनल
लाल, पीला और हरा
कर दी सिपाही की नियुक्ति
मुसाफिर
रुकेगा या पार हो जायेगा?
तंत्र या नियम पर
रह गया विश्वास?
****
तुम्हे यकीं है
परमात्मा पर?
लेकिन
तुम जानती हो
मुझे तुम पर खुद से ज्यादा
कल उगेगा सूरज पूरब से ही
और डूब जायेगा पश्चिम में
भरोसा रख खुदा पर खुद से ज्यादा
न इम्तहान ले नेकी बदी की कभी
ये जमीं आसमां मिलेंगे क्षितिज पर ही
कभी फलक पे कभी लहरों में समंदर के
१० अप्रेल २०१३
ज़िन्दगी के संग चलते चलते
चित्र गूगल से साभार
भरोसा रख खुदा पर खुद से ज्यादा
ReplyDeleteन इम्तहान ले नेकी बदी की कभी
सही कहा है..सुंदर भाव !
भरोसा और विश्वास से ही जिन्दगी आगे बढ्ती है....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभरोसा ही है जो हर परिस्थिति में पार लगाता है .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह, सूक्ष्म से व्यापक सभी आयाम समाहित.
ReplyDeleteसर जी आपके मार्गदर्शक टिपण्णी से लेखन को दिशा मिलती है वरदहस्त बनाये रखियेगा
Deleteभरोसा रख खुदा पर खुद से ज्यादा
ReplyDeleteन इम्तहान ले नेकी बदी की कभी- विश्वास की पहली सीडी
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भरोसा रख खुदा पर खुद से ज्यादा---
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहा है।
अति सुन्दर --- आँखें हैं।
आपकी पारखी नज़रों को प्रणाम , स्नेह की बारिस वैशाख में भी भिगो गया तन मन
Deleteगहरी अभिव्यक्ति..... सुंदर रेखांकन किया आपने
ReplyDeleteभरोसा रख खुदा पर खुद से ज्यादा
ReplyDeleteन इम्तहान ले नेकी बदी की कभी
...यही भरोसा क़ायम रहे... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
विश्वास,अविश्वास और विश्वासघात की परिभाषाएं बदल जाती हैं समय और स्वार्थ के साथ,मोबाईल युग का यह भी है उपहार
ReplyDeleteजिसको सब कुछ कह दिया फिर उसके भरोसे पे भरोसा रख दिया ...
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत खूब ..
जीवन के यह रंग ..
ReplyDeleteनिराला अंदाज..
ReplyDeleteजीवन को एक परिधि में समेट कर प्रश्न चिन्ह लागते चले गए आप अपनी कविताओं में..गहरी सोच है.
ReplyDeleteअल्पना जी आजकल ब्लॉग पर बिना पढ़े टिपण्णी लिखने के दौर में आपकी टिपण्णी दिल को सुकून देती है वरना जिस भाव को उकेरने में महीने लगते हैं और मात्रा, वर्तनी की ढेरों गलती बनी रहती है, किसी को कुछ कहना उचित नहीं लेकिन सोचता हूँ ऐसा क्यों ?
Deleteवाह .... बहुत ही अनुपम भावों का संगम
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया.......
ReplyDeleteआदमी को अपने अविश्वास पर कितना विश्वास है - यही बता दिया आपने बडी सुन्दरता से। वाह।
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