आज नैतिकता की चर्चा न करो लाश बिछी है राह पर |
आज नैतिकता की चर्चा न करो
लाश बिछी है राह पर
फूल और काँटों की वार्ता न करो
खून से लथपथ राह पर
हत्या किसी की हो हम शब्दों के मरहम न लगायें
एक सार्वभौमिक, सर्वमान्य, सर्वकालिक, सर्वग्राह्य
नीति का निर्धारण समस्या के समाधान के लिये और
हम सब संकल्प लें क्रियान्वयन में
आज न हो सका तो कल सम्भावनाये समाप्त होती हैं
और हमारी अस्मिता और निष्ठां पर प्रश्न चिन्ह लगता है
ये हत्या
रंग, वर्ण, जाति, संप्रदाय, धर्म, राजनीति, दल, लिंग से परे है
कहीं कुछ भी लिख देना किसी को आहत कर देना मेरा न मकसद
न ही बड़ाई पाना , जब मेरी नियुक्ति दंतेवाड़ा हाई स्कुल में १९७७ में थी
तब सम्पूर्ण बस्तर अपने भोले निश्छलपन के लिए जाना जाता था।
श्री महेंद्र कर्मा जी मेरे अच्छे मित्र रहे और श्री नन्द कुमार पटेल जी,
भी मेरे शुभचिंतकों में, सभी आहतों के प्रति मेरी संवेदना
और स्वर्गस्थ आत्माओं को मेरी विनम्र श्रद्धांजली
राजपथ पर घटित एक वारदात
प्रतिशोध या हत्या
संपूर्ण नपुंसक
न कोई चिंतन
न कोई चिंता,
आजादी के बाद भी
विगत वर्षों में
सरहद पर होती
अनगिनत हत्याओं को
शहादत बतलाकर
ओढ़ा दिया तिरंगा,
बिलखती रही मां
निढाल हो गये बच्चे
कागजी ढ़ाढ़स से
अपनों की छांव में,
अतिथी के वेष में
पहुंचा सौदागर?
पड़ोसी परदेश से
और सब
शालीनता-विनम्रता में
भूल गए पूछना
न ही कभी दी चेतावनी
न ही कभी करारा जवाब
किन्तु चिंतित हो गये
राजपथ की हत्या पर
क्योंकि इस राह पर
बरसों इन्हें टहलना है?
रमाकांत सिंह 25/07/2001
मेरी अपेक्षा सभी राजनैतिक, गैर राजनैतिक,
सत्ता पक्ष और विपक्ष से कि मेरी लिखी लाइन को झुठला दें
एक सार्थक फैसला लेकर
चित्र गूगल से साभार
प्रकाशित रचना का पुनः प्रकाशन
बेहद अफ्सोसज़नक।
ReplyDeleteइन्सान हैवान हो गया है।
शर्मनाक घटना घटी है छत्तीसगढ़ में..
ReplyDeleteइससे नक्सल वादी अपना आधार खोएंगे , सहानुभूति नष्ट होगी ..
यह क्षम्य नहीं है !
सतीश भाई साहब ये आक्रोश क्यों? क्या सिद्ध करना हैं यदि सेना को सौप दिया गया तो?
Deleteबहुत बेहतरीन सार्थक रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
हर वाद के पीछे कोई चिन्तन होता है - पर यहाँ कोई कोई सार्थक विचार दिखाई नहीं देता .इस अतिवाद क्या सधेगा !
ReplyDeleteपहले तो निकल आते थे सड़कों पर सैर के बहाने
ReplyDeleteअब आकाश से पथराव का दर होता है
साभार "दुष्यंत कुमार " की गज़लें
आदरणीय सिंह साहब आपने मेरे दिल की बात कहूँ या ज़बान पर आई बात लुट ली
Deleteपहले तो निकल आते थे सड़कों पर सैर के बहाने
अब आकाश से पथराव का डर होता है
बहुत ही सुन्दर और सशक्त लेखनी | पढ़कर अच्छा लगा | सादर आभार |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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शर्मनाक ... एक तरफ हम आआगे बढ़ने की बात करते हैं दूसरी तरफ छोटे छोटे स्वार्थ की आज में खून खराबा करते हैं ....
ReplyDeleteकहां जा के रुकेगा इंसान ...
जन नेता, जन-जन के नेताओं को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteनक्सली पन्दोली पावत हावैं तभे तो पनपत हावैं न
ReplyDelete'शकुन' सुते हावय सियान हर जागव अब मोहन प्यारे ।
श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteये खुनी खेल न जाने कहां जेक दम लेगा कभी धर्म , कभी वैर कभी रंजिशे न जाने किस - किसको अपनी आगोश में लेगा |
ReplyDeleteदर्द को बयाँ करने में सफल रचना |
स्वार्थ का एक विभत्स रूप .......सार्थक रचना ..!!
ReplyDeleteबेहद मार्मिक .........
ReplyDeleteगहन और विचारपूर्ण लेखन. इन सबमें दोष किसका? प्रभावित कौन? निदान क्या? सब ये जानते हैं पर... सवालों के घेरे में किसे लाया जाए और किसे छोड़ा जाए. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteडॉ साहिबा यही तो त्रासदी है जिस पर सबको विचार करना है
Deleteस्वार्थ का एक विभत्स रूप..बेहद मार्मिक .आभार..
ReplyDeleteजियो और जीने दो भाई अपनों के बीच ये कैसी खाई ?
ReplyDeleteखत्म करो आपस की लडाई समझो तुम भी पीर पराई ।