बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं? |
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
बना राम तो बनवास चला जाऊंगा
लक्ष्मण बन गया तो शक्ति सह पाऊंगा?
सीता बनी तो अग्नि परीक्षा होगी।
कैकेयी बनी तो भरत विमुख हो जायेगा
बना दशरथ तो पुत्र शोक सहना होगा।
उर्मिला बनी तो राह ताकनी होगी
रावण बना तो दसशीश बन पाऊंगा?
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
कृष्ण बना तो महाभारत रचना होगा।
धृतराष्ट्र बना तो अंधा हो जाऊंगा।
गांधारी बनी तो पट्टियां बांधनी होंगी
कुन्ती बनी तो करन पाना होगा।
करण बना तो सारथी सूत कहलाऊंगा
भीष्म बना तो शर सेज ही पाऊंगा
बना अर्जुन तो स्वजन हत पाऊंगा?
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
बना बुद्ध तो यातना सह पाऊंगा?
यशोधरा बनी तो राहुल पालना होगा।
लक्ष्मी बनी तो तलवार उठानी होगी।
आजाद बना तो खुद को मारना होगा।
बना भगत जो फांसी चढ़ पाऊंगा?
और जो बना गांधी गोली झेल पाऊंगा?
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
10.06.2002
चित्र गूगल से साभार
दो टिपण्णी आदरणीया अमृता तन्मय जी
और श्री संजय भाष्कर जी के प्राप्त
पूर्व प्रकाशित रचना का पुनः प्रकाशन
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
ReplyDeleteबना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
वाह !!! बहुत खूब , रमाकांत कान्त जी ,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
बनूं तो क्या बनूं ??
ReplyDeleteसच है !!
बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
ReplyDeleteबना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
बहुत गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति ....अनेक प्रश्न मन में उठ रहे हैं पढ़ कर ....!!
बहुत सुन्दर रचना ...!!
बधाई स्वीकारें ....
आप जो बने हैं इन पंक्तियों के रचनाकार, वो क्या कम है.
ReplyDeleteजो बनें उसका निर्वाह भी समुचित रूप से होता है- सोचना बेकार !
ReplyDeleteसही है ...
ReplyDeleteयह खूबसूरत रचनाये देते रहें ..
शुभकामनायें
ये सब तो बनना मुश्किल है ... और इंसान बन्ना तो और भी ज्यादा मुश्किल ...
ReplyDeleteजीवन की कशमकश में जीना आसां नहीं ... पर अपना अपना किरदार तो निभाना ही होगा ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteआदरणीया आपने रचना को इस काबिल समझा आपका ह्रदय से आभार किया जाता है .....
Deleteआदमी सब को धोखा दे सकता है , खुद को नहीं। दिल की सुनें।
ReplyDeleteदरअसल वे सारे लोग जिनके नाम इस कविता में आये हैं वे अपने उन्हीं गुणों के कारण वे हुए.. फिर भी कोई किसी के जैसा क्यों बने, क्यों न अपने आप में अनोखा बने, एक मिसाल!! दूसरा राम, कृष्ण या गांधी बनने से तो अच्छा होगा पहला रमाकांत सिंह बनना!! बहुत अच्छी कविता!!
ReplyDeleteसलिल भाई साहब सुप्रभात आपने बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी आपके आदेश का पालन करने का प्रयास किया जायेगा ******
Deleteबहुत सुन्दर रमाकांत जी , उत्तम प्रस्तुति !
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
बडी उलझन है! सुन्दर रचना
ReplyDeleteबनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
ReplyDeleteसहज सरल शब्दों में बेहतरीन प्रस्तुति ...
बहुत सटीक प्रश्न उठाया है आपने..इंसान बनना ही तो सबसे कठिन है..इंसान बनने के साथ ही उठानी पड़ती हैं जिम्मेदारियां...जीने की और मरने की..
ReplyDeleteईश्वर ने आपको बहुत बढिया बनाया है। ईश्वर के निर्माण में मरम्मत करने की सोचिए भी मत। आप जैसे हैं, बहुत अच्छे हैं। ऐसे ही बने रहिए।
ReplyDeleteउत्तर चुप है..
ReplyDeleteयही फ़ैसला दुश्वार है सिंह साहब, इसलिये जो हैं वही अच्छे से बना जाये।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा और बहुत उम्दा सोच के साथ लिखा | बढ़िया
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