बदला मिजाज़, माज़रा, या मंज़र तेरा
मेरा वहम हो जहर या अमृत चख लूं?
भोर की हवा में घुलने लगी आग
आसमां से बरसा जहर, अमृत बन
थम गई सागर के भीतर हलचल
झरने का जल चढ़ने लगा परबत
जेठ में चाँद नज़र आया दिन में
रात को सूरज उगा रोशनी के लिये
मरी मछली चढ़ी प्रतिकूल धारा में सहज
दुश्मनों ने मिलाये हैं हाथ हंसकर
आज बच्चे की हंसी लगी खोखली
मृत नयनों में जगी आस की सासें
लोगों ने टाला ताला लगाना घर में
सरे राह छू लिये चरन पुत्र ने पिता के
लोग आज मिलने लगे हैं गले प्रेम से
बेखौफ चलने लगी बेटीयां घर को अँधेरी राह पर
लोगों की हंसी शोकसभा में शामिल
तेरी आँखों में नमी, हाथ में फिर खंज़र
शेर डरकर लगे हैं चलने झुण्ड में बन में
साधु जा छिपे हैं किसी खोह में हंसते
आज नदियों ने भी बन्ध छीन लिये
गाय देती है लात दूध थन में हाज़िर
फल लगे हैं मेरे आँगन के पेड़ में फिर तन के खड़ा
मेरे मालिक मेरे मौला ये करिश्मा कैसा या करम है मेरा?
ये कायनात, ये बाशिन्दे तेरे, कौन जाने दर्द तेरा या मेरा?
२१ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार
मेरे मन की ब्लॉग की सर्जिका
अर्चना चाव जी को सस्नेह समर्पित
Well said. Good article. Plz visit my blog.
ReplyDeleteमेरे मालिक मेरे मौला ये करिश्मा कैसा या करम है मेरा?
ReplyDeleteये कायनात, ये बाशिन्दे तेरे, कौन जाने दर्द तेरा या मेरा?,,,,वाह !!!! उम्दा अभिव्यक्ति,,,,
Recent post: जनता सबक सिखायेगी...
ये तो वही जाने जिसने रची अजब दुनिया और दुनियादारी...
ReplyDeleteगहन भाव... आभार
सुंदर रचना, आप और अर्चना जी दोनों बधाई के पात्र.
ReplyDeleteसर जी आप सबका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे अपेक्षारत***
Deleteमेरी भी यही अपेक्षा....
DeleteBahut Sundar...
ReplyDeleteदुनिया रंग रंगीली बाबा दुनिया रंग रंगीली रे
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteमेरे मालिक मेरे मौला ये करिश्मा कैसा या करम है मेरा?
ReplyDeleteये कायनात, ये बाशिन्दे तेरे, कौन जाने दर्द तेरा या मेरा?... बहुत बढिया
यही तो दुनिया है,यही गोरखधंधा है !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, बधाई, यही दुनिया है दुनिया
ReplyDeleteप्रतिकूल परिस्थितियों में उल्टे रास्ते पर चलकर भी अपने लक्ष्य को पाना ही उद्देश्य है मेरा ....और इस हिम्मत ...और हौसले मे साथ देने को बख्शे हैं, कुछ नगीने अपनी कायनात से मेरे हिस्से में उसने ....उसमें से एक आप हैं ....
ReplyDeleteआभारी हूँ इतनी अच्छी रचना को मेरी झोली में देने के लिए ....
सादर चरण स्पर्श.....
आपने तो कबीर की उलट बॉंसियॉं याद दिला दीं।
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