सारथी |
मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कीजिये, ताकि मैं देख सकूँ ............
महाभारत के युद्ध में ग्यारह अक्ष्रोनी सेना के बदले बिना अस्त्र शस्त्र के यशोदानंदन
अर्जुन के सारथी बन गये दुर्योधन ने नहीं माँगा चक्रधारी कन्हैया को जिसने रचा था
युद्ध जय पराजय का कैसी विडंबना है हम बिसरा देते है मूल पात्र को ठीक नींव की
पत्थर की तरह वजूदहीन मानकर जबकि यही होते हैं **किंग मेकर**
त्रेता युग में राजमाता कैकेयी बनी थी सारथी राजा दशरथ संग देवासुर संग्राम में और
रथ का पहिया गिरने से बचाने के लिये बना दी थी खूंटी उंगली की जिसमें भरा था
अमृत अमरत्व हेतु किन्तु सारथी थी।
द्वापर में बने सारथी मुरली मनोहर महाभारत रचने और कुरु वंश के विनाश के लिये?
शल्य और शिखण्डी सारथी बन युद्ध को दे गये नयी दिशा धर्म और अधर्म बीच?
पाण्डवों के अज्ञातवास में बृहन्नला अर्जुन को भी बनना पड़ा था सारथी उत्तर कुमार का
युद्ध के बीच बदलकर भूमिका बदल दी गई युद्ध की दिशा और दशा समाप्त कर अज्ञातवास
अयोध्या नरेश ऋतु पर्ण के सारथी राजा नल बाहुक के क्षद्म नाम अश्व सारथी बन
अश्व सञ्चालन कला का ज्ञान कराया और उनसे द्युत विद्या में प्रवीणता प्राप्त कर
पुनः अपनी यश कीर्ति राजा पुष्कर से वापस पाई।
सारथी कौन हो सकता है?
रथी के सामने बैठे, रथ का सञ्चालन विपरीत परिस्थिति में भी उपयुक्त कर रथी की रक्षा करे,
अनुकूल परिस्थिति में शत्रु के समीप रथ लाकर रथी को सांघातिक प्रहार करने का अवसर उपलब्ध कराये
और करे यथा काल अस्त्र शस्त्र की आपूर्ति युद्ध और प्रतिरक्षा में
समन्वय या कहें तादात्म्य स्थापित कर दे बिन कहे पूछे रथी के
हो युद्ध निपुण, रणनीति में पारंगत धर्म अधर्म का ज्ञान रख निर्विकार
सुझाव और उत्साहवर्धन बिन श्रेय की आसक्ति के
मानव जीवन में शरीर रथ की भांति , इन्द्रियाँ घोड़े की तरह , रास इन्द्रियों पर नियंत्रण के लिये और मन सारथी सा और इन सारे से युक्त आत्मा रथी की तरह भोक्ता होती है इसमें किसी का भी महत्व किसी से भी कम कहाँ होता है सब होते हैं अन्योन्यश्रित इन्द्रियों से उत्पन्न इक्षाओं और रथी द्वारा इनके शास्त्र सम्मत भोग के मध्य संतुलन सारथी ही साधता है अतः सैद्धांतिक रूप से सभी का महत्व समान होते हुए भी व्यावहारिक रूप से सारथी सर्वोपरि होता है।
यदि रथ ही नहीं रहा तो रथी युद्ध स्थल पर कैसे पहुचेगा?
घोड़े नहीं हुए तो रथ को गति कौन देगा?
रास न हो तो घोड़े अनियंत्रित होकर रथ को ही नष्ट कर देंगे
सारथी ही नियंत्रित करता है रथ और घोड़े को लक्ष्य तक?
और इन सभी उपादानों से युक्त रथ पर रथी रूपी आत्मा ही नहीं रही
तब इनका उपभोग कौन करेगा?
रथ, घोड़ा, रास, सारथी, रथी, अस्त्र शस्त्र, और शत्रु संग युद्ध में जय पराजय निर्धारित करने की स्थिति में होता है सारथी जो सदैव श्रेय से वंचित रहते हुए भी सदैव रत और प्रस्तुत होता है अपने कर्म में
सारथी
बस सारथी
और सारथी
शेष अगले अंक में
आदरणीय प्रतुल वशिष्ठ जी
भारत भारती वैभवं के सर्जक श्रेष्ट
को समर्पित वादे के मुताबिक
सारथी निश्चित रूप से सर्वोपरि है ...दिशाहीन हो तो जीवन के अर्थ क्या ?
ReplyDeletejeevan yudhdh ho ya sangram disha pradan karne vala sarthi hota hai..sundar vyakhya ...
ReplyDeleteसारथी सर्वोपरि होता है ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeletesarthi ki jarurat to hoti hi hai .......bahut badhiya ....
ReplyDeleteसारथी की महत्ता को रेखांकित करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं . आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख!
ReplyDeleteगहन दर्शन ..आप्लावित करता हुआ..
ReplyDeleteशास्त्रीय दृष्टि.
ReplyDeleteसारथी जो सदैव श्रेय से वंचित रहते हुए भी सदैव रत और प्रस्तुत होता है अपने कर्म में
ReplyDeleteसारथी
बस सारथी
और सारथी
बेहद गहन भाव लिये उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आपके स्नेह का ह्रदय से आभारी कि आपने ब्लॉग बुलेटिन के ५०० वें पोस्ट में नंगे पाँव में सारथी / रथी भाग १ शामिल कर मेरी भावनाओं को संबल दिया मैं आजन्म ऋणी सादर प्रणाम स्वीकारें ******
ReplyDeleteगूढ गंभीर ज्ञान, रामायण से लेकर महाभारत के दृष्टांत वर्तमान संदर्भ में भी कंचनवत हैं।
ReplyDeleteआपकी लेखनी सारथि से कम नहीं ...
ReplyDeleteयह भी एक दृष्टिकोण तो है।
ReplyDeleteपौराणिक पात्रों के माध्यम से शाश्वत स्थितियों और संबंधों पर गहन सोच और विश्लेषण
ReplyDeleteसर जी आपका मार्गदर्शन और प्रेरणादायी साथ लेखन को सदा गति देता है आजीवन ऋणी आपके सहयोग और मार्गदर्शन का ***
Deleteजीवन के अनेक मार्गों पे सारथि की जरूरत होती है ... मिलते भी हैं ऐसे सारथि इसलिए जरूरत पढ़ने पे किसी का सारथि बनने में परहेज नहीं होना चाहिए ... ये जीवन की रीत है ..
ReplyDeleteआदरणीय दिगंबर नासवा जी आपने सत्य कहा अगले अंक में ऐसे ही निर्विकार संत सारथी की चर्चा है।
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