नज़रें मिला लोगों से, तेरी जात और औकात का पता ये तेरे पैरों के निशां, खुद ब खुद बोल जायेंगे बिन पूछे |
आज होली पर
राजा विक्रम
जैसे ही दातुन मुखारी के लिए निकला
वेताल खुद लटिया के जुठही तालाब के
पीपल पेड़ से उतर कंधे पर लद गया
दोनों निकल पड़े नगर के रेल्वे फाटक की ओर
रास्ते में एक क़स्बा मिला
सोनपुरा
राह में एक जीव देखकर
वेताल जिज्ञासा से भर उठा
सांवला थुलथुल शरीर, खिचड़ी बाल
साउथ इंडियन लुक किन्तु बंगाली मिक्स
वेताल ने राजन से कहा
राजन
मै हमेशा एक कहानी सुनाता हूँ
और आप मौन रहकर मेरा माखौल उड़ाते हो
किन्तु आज ऐसा नहीं करने दूंगा
आज की कहानी
किसी नमकहराम जीव से सुनें
किन्तु प्रश्न मैं ही पूछूँगा
आज सही उत्तर चाहिए
विधान सभा में प्रजाहित में
आज आपके
ज्ञान और सत्य की परीक्षा है
जो स्वीकार करता है
अपना गलिजपना
और एहसान फरामोशी
बिसरा दिया जिसने मिट्टी का क़र्ज़
और मृत्यु के बाद
करता है मिथ्या आरोप प्रत्यारोप
इस दोगले जीव को
किस जाति से पुकारें?
राजन
मुझे भारतीय होने पर गर्व है
तुम्हे उज्जैनीय होने पर गर्व है
तो इसे
अकलतरा निवासी होने पर गर्व क्यों नहीं?
क्या इसने या इसके पूर्वजों ने वहां भीख मांगी थी?
जिस मिट्टी में पला बढ़ा
जहाँ शिक्षा पाई
अन्न खाया गरीबी में भी
क्या संलिप्त रहा किसी दुष्कर्म में?
विस्मृत कर दिया
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि .....?
या लोग पहचान लेंगे इस भिखारी को?
चलो कर दें अकलतरा को सोनपुरा?
मुझे कभी भी आपने पेड़ से उतार कर
जमीं पर पटका नहीं
बार बार कंधे पर लाद निकल पड़ते हो
नई कथा की तलाश में
राजन
ज़रा गौर करो इसके महान चरित्र पर
जिसे सोलह जगह से लात मारकर भगाया गया
राजधानी दिल्ली से भी सत्ताच्युत किया गया
सब कुछ सीखा अपनी भाभी से?
रिश्तों को ताक़ पर रखकर
और अब सिखाता है दुनिया को सदाचार का पाठ
अंपने ही भाई से विश्वासघात करके
नंगा नहाये निचोड़े किसको पहने किसको?
ज़रा पूछो इस टुच्चे से
थप्पड़ खाकर कहानी लिख लोगे?
छिछोरेपन से पेट कब तक भरोगे?
रहोगे सूअर के सूअर?
संस्कारों में जो मिला?
वही न दृष्टिगोचर होगा
विक्रम उद्विग्न हो उठे
गन्दी सुकर कथा सुनकर
जैसे ही म्यान से तलवार खीची
और कहा
किस नमकहराम की कथा सुना रहे हो?
राजा विक्रम का मौन भंग हुआ
वेताल खी खी करते हुए नंगे पैर भाग निकला
जुठही तालाब के बट वृक्ष की ओर
और जाकर खुद लटक गया
राजन
बुरा न मानो होली है?
चित्र गूगल से साभार
अकलतरा की माटी, विद्यालय, गुरुजनों,और निवासियों को समर्पित
जिनके प्रेम और मार्गदर्शन से मेरे गुण और अवगुण का विकास हुआ।
एक दम नया ही रंग है आज सिंह साहब, विक्रम का भी और वेताल का भी और आपका भी, बुरा न मानो होली है :)
ReplyDeleteआपको और आपके सभी अपनों को रंगपर्व की बहुत बहुत बधाई ।
दिलचस्प।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें।
बेहद दिलचस्प प्रस्तुति सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteआपको होली की हार्दिक शुभकामनाए,,,
Recent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,
बहुत खूब....होली की हार्दिक शुभकामनायें!
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ReplyDeleteअच्छी लगी बेताल की कहानी अकलतरा में .होली की हार्दिक शुभकामनायें!
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ReplyDeleteजीवन के कई रंग दिखा दिए आपने होली के बहाने
जिसे अपनी जन्मभूमि से लगाव न हो ऐसा इंसान किसी का भी नहीं हो सकता...अनोखा अंदाज़... होली के रंग आपके जीवन को नए हर्ष और उल्लास से भर दें. होली की बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनाएं!
http://voice-brijesh.blogspot.com
बहुत बढ़िया रचना ...शुभ होली
ReplyDeleteचक्करवर्ती के फ़ेर मा पर गे राजा
ReplyDeleteबस जुटहा ल दू लात खंगे हे। :)
होली की आड़ में आज तो खूब सही कटाक्ष किया है.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.
march to dis lalit bhai kange kaha he. wase bhi babu sahab kono kam la adura krbe nahi kare.ab aau ka bache he. achhi rachna subhkamnao sahit babusahab.........
ReplyDeleteसीरिअस होते होते अचानक होली के रंग में रंग गई ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना रमाकांत जी ... होली की बधाई ...
बहुत सुंदर
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