ज़िन्दगी बता मेरी खता क्या है? क्या मेरा तुझे टूटकर चाहना? |
*आसक्ति
ब्रज और मथुरा में
होली पर रंग गुलाल खेलते गोप गोपियाँ कहने लगे
यशोदानंदन मेरा है
किसी ने कहा बाँकेबिहारी
बस मेरा ही है तुम कहो?
मच गई धूम
सबने अपने रंगों में रंग दिया घनश्याम को बिन जाने कहके
*राधा* ने कहा
मैं नहीं जानती कृष्ण किसका है?
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि
मैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ
** प्रेम
तेरी कुड़माई हो गई है?
देखता नहीं
ये रेशमी जड़ा हुआ शालू
इस बार
**उसने कहा था**
न शरमाई
न कहा धत
लहना सिंह लौटा गया था
लस्सी की दुकान से
अमर प्रेम कथा
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की
शायद प्रेम में उत्सर्ग
वजीरा ज़रा पानी पिला
प्रेम में न्यौछावर होना लिखा था
***प्यार
मैं प्यार करता तुम्हे
अपनी ज़िन्दगी से ज्यादा
तुम मुझसे प्यार करती हो?
ऐ क्या बोलती तू?
आती क्या खंडाला?
ऐ क्या मैं बोलूं?
क्या करूँ आके मैं खंडाला?
समर्पण?
निष्ठा?
त्याग?
तपस्या?
शायद
प्रतिदान और प्रतिदान
२२ .०३ . २०१३
समर्पित मेरी * जिंदगी * को
जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी है
चन्दन ज्वेलर्स अकलतरा के कर्ता धर्ता
श्री मदन मामा जी की सुनाई कथा का लेखन
चित्र गूगल से साभार
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि
ReplyDeleteमैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ,,,
आसक्ति,प्रेम ,प्यार,में समर्पित बहुत ही सुंदर रचना,,,
होली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
कमाल है...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
आभार
*राधा* ने कहा
ReplyDeleteमैं नहीं जानती कृष्ण किसका है?
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि
मैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ
निराला अंदाज़....गहन भाव... आभार
मैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ.....is ik pankti men hi to pyaar ka marm chipa hai ........bahut
ReplyDeletehi km shabdon men bta di gahraai pyar ki .....
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDelete*राधा* ने कहा
ReplyDeleteमैं नहीं जानती कृष्ण किसका है?
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि
मैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ
शायद एक यही भाव है जो राधा की अलग करता है सभी से ... जो चाहत नहीं रखती ... पर देती है निश्छल प्रेम ...
शायद यही आसक्ति , प्रेम और प्यार का भेद भी हो
Delete
ReplyDeleteकल दिनांक25/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
हैपी होली ... सुभकामनाएँ
Deleteयशवंत माथुर जी आपका स्नेह और आशीर्वाद सदैव मुझ पर बरसता है इस बार आपने प्रेम से रंग दिया आभार
Deleteसूबेदारनी ने कहा जैसे उस दिन मुझे किनारे खड़ा कर खुद घोड़ों के नीचे आ गए ऐसे ही इन दोनों की रक्ष करना
ReplyDeleteसर जी लगता है सुबेदारिन का प्रेम अभी भी मन के किसी कोने में बैठा आवाज दे रहा है।
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ReplyDeleteसमर्पण?
निष्ठा?
त्याग?
तपस्या?
शायद
प्रतिदान और प्रतिदान
२२ .०३ . २०१३
समर्पित मेरी * जिंदगी * को
जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी है
bahut sundar pravishti ke liye aabhar .
अद्भुत अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteआपके लिए मंगलकामनाएँ साथ ही होली की अनंत शुभकामनाएँ!!