मैं यकीन करती हूँ
ईश्वर पर
और उसके बनाये
दो कृतियों पर
नर और मादा
मादा और नर
परमात्मा ने बनाये
हमने अपनी खातिर गढ़े हैं
रिश्ते
रिश्ते
भगवान ने बनाये हैं?
हमने स्वीकार किये?
कुछ मन से
कुछ अनमने?
माँ ने कहा पिता है
हमने स्वीकार लिया भाई बहन
समाज ने लगवा दिए फेरे
बंध गये जन्म जन्मान्तर के बंधन में
मान लिया स्वामी जन्म जन्मों का?
मैंने बतलाया तो
तुम
मेरे पुत्र के पिता
मेरी बेटी के जन्मदाता
बायोलोजिकल
अन्यथा
क्या तो तुम?
क्या तुम्हारी हैसियत?
एक कथन से
बिखर जाते हैं रिश्ते?
टूट जाता है भ्रम
जननी जनक का?
मैं रिश्तों को जीती हूँ
मैं रिश्तों में जीती हूँ
तुम रिसतों को जीते हो
तुम रिसतों में जीते हो
चित्र गूगल से साभार
मौलिकता बनाम परिवर्तन की अंतिम कड़ी
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
ज़िन्दगी की जुबानी ज़िन्दगी की कहानी
अल्फाज़ उसके लेखनी मेरी
सुन्दर शब्द प्रवाह और भाव..
ReplyDeleteपुरुष को उसकी 'औकात' और 'हैसियत' बडे दम-खम से जताई -
ReplyDeleteमैंने बतलाया तो
तुम
मेरे पुत्र के पिता
मेरी बेटी के जन्मदाता
बायोलोजिकल
अन्यथा
क्या तो तुम?
क्या तुम्हारी हैसियत?
शानदार। हवा में लहराता कोडा सटाक् से पडा। झन्नाटेदार। तबीयत खुश हो गई। नारी का यह स्वर पूरे देश में, पूरी दुनिया में गूँज, सम्पूर्ण आत्म विश्वास से गूँजे।
सुन्दर भाव, बढ़िया शब्द प्रवाह..आभार
ReplyDeleteआपसी विश्वास और प्रेम ही रिश्तों का आधार है... बहुत सुन्दर रचना... होली की अग्रिम शुभकामनायें.
ReplyDeleteप्याज के छिलके से रिश्ते.
ReplyDeleteविश्वास और प्रेम ही रिश्तों का आधार होता है,बहुत ही सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसंसार के सभी रिश्ते मानने से ही हैं ... जीने से ही हैं ..
ReplyDeleteअन्यथा व्यर्थ की बातें ... हां नारी चाहे तो रिश्ते बने रहते हैं ...
रिश्तों की कडि़या ... जुड़ती जाती हैं शब्द दर शब्द
ReplyDeleteबेहद अनुपम भाव
सादर
सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
ReplyDeleteरिश्तों का आधार हमारे आपके मानने से होता है,वर्ना रिश्तों को तोड़ने में देर कितनी लगती है,,,,
ReplyDeleteRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
नारी महान है ..
ReplyDeleteबधाई बहिया अभिव्यक्ति के लिए !
sachmuch reste asse hi hote hai nibhao to sab kuch nahi to kuch bhi nahi.sundar rachna.
ReplyDeleteसार्थक पंक्तियाँ..... बेहतरीन रचना
ReplyDeleteरिश्तों और रिसना ....रिश्तों का रिसना..कौन किस को जीता है.इन शब्दों का अलग परिस्थितयाँ अलग अर्थ रखती हैं.
ReplyDeleteअच्छी कविता.
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteतथागत ब्लॉग के सृजन करता श्री राजेशकुमार सिंह जी की टिप्पणी
ReplyDeleteक्षमा याचना सहित
बाबूसाहब
आपके नए पोस्ट पर तीसरा कमेन्ट मैंने किया था मुझे तब तो दिख रहा था अब गायब है दो बार से ऐसा हो जा रहा स्पैम में तो नहीं चला जा रहा,कमेन्ट था
मातृत्व सच्चाई,पितृत्व विश्वास।सारगर्भित और विचारणीय रचना
इसमें कोई शक नहीं, हर रिश्ता विश्वास की डोर से ही बंधा होता है।
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