विचारों के अनंत सागर में
पानी में बनी
सीधी लकीरें
स्वप्न या दिवास्वप्न
दिवास्वप्न ही जीवन है?
जीवन एक जंजीर?
जिसकी कडि़यां खुलती हैं
बंधकर खुलने तक
यह एक माया?
छल, भ्रम, अनुगूंज
या झंकार है?
एक से जुड़ी
दूसरी दत्तक कड़ी
कोरी कल्पना?
मिथ्या किंवा
शाश्वत सत्य
भ्रमबोध में
पुनः-पुनश्च
11/10/1975
चित्र गूगल से साभार
भारी कठिन कविता है गा, कड़ी कड़ी ला जोड़ के।
ReplyDeleteJaha gujarti hazaro kashtiya aise me lahro ko nind kaha ati hai,aur ab to sapano me hi tumase mulaquat hoti hai.
ReplyDeleteJaha gujarti hazaro kashtiya aise me lahro ko nind kaha ati hai,aur ab to sapano me hi tumase mulaquat hoti hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteजीवन क्या है ये बड़ी विकट पहेली है...
टंकण त्रुटि सुधार लीजिए.साश्वत को शाश्वत कर लें.
सादर.
मेरी टिप्पणी खोजिये रमाकांत जी...
ReplyDeleteदिवास्वप्न ही जीवन है?
ReplyDeleteजीवन एक जंजीर?
जिसकी कडि़यां खुलती हैं
बंधकर खुलने तक
Ji han.... Bahut Gahari Soch Liye Panktiyan
गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteवाह! सुंदर सृजन....
ReplyDeleteदिवास्वप्न ही जीवन है साकार करें इसको आओ।
जब तक रहना है बंधन मे, जय कृष्ण कृष्ण गाते जाओ॥
सादर बधाई।
बंधकर खुलने तक
ReplyDeleteयह एक माया?
छल, भ्रम, अनुगूंज
या झंकार है?... राग है अनुराग है या अनुभवों का भवसागर !
दिवास्वप्न ही जीवन है?
ReplyDeleteजीवन एक जंजीर?
bahut hi ahan artha liye rachana...
behtarin rachana:-)
गहन
ReplyDeleteबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteशाश्वत सत्य सी रचना..
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या
ReplyDeleteबहुत शानदार....गहन अभिव्यक्ति ....!!!!
ReplyDelete.................बहुत सुंदर
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ
मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ कृपया मेरा मार्ग दर्शन करे
http://rajkumarchuhan.blogspot.in