गुरुकुल ५

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Friday 9 March 2012

तुम बदल गई ?


आप बदल गये
इसलिए मैं बदल गई
नहीं।
तुम बदल गई
इसलिए मैं बदल गया
मैं जैसी भी हूं
अच्छी हूं या गंदी हूं
आपकी अपनी हूं


नहीं।

तुम जैसी भी हो
तुम मेरी जिंदगी हो।

हमने पाल लिया एक भ्रम
बदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया
आंखों ने जो देखा
उसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
कानों ने जो सुना
उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।

हवाओं में आज भी
सरसराहट है
हाथ आज भी
खिड़की के बाहर है
बंद कमरे में आज भी
कोई चीखता है

और हर सू एक ही चेहरा दिखता है।

रमाकांत सिंह 01/03/2011
(चित्र गूगल से साभार)

19 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति...

    RESENT POST...फुहार...फागुन...

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  2. बहुत गहन भाव लिए अच्छी रचना ...

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  3. बदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
    बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया...
    सुंदर रचना...

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  4. अच्छी रचना...कोमल भाव लिए...

    अगर बुरा ना माने...सिर्फ मेरे विचार हैं..
    अच्छी हूँ या "गन्दी" हूँ...में यदि अच्छी हूँ या "बुरी" हूँ कर दें तो और काव्यात्मक लगे शायद...
    सादर

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  5. कल 10/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. यह कराह है शायद, जो बंद कमरे की चीख सी लग रही है आपको.

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  7. सुझाव- अंतिम पंक्ति अगर इस तरह हो तो कैसा रहे ?
    और हर सू एक ही चेहरा दिखता है.
    टिप्‍पणी- इसी तारतम्‍य में दो लाइन (स्‍मरण कराते हुए) सप्रेम समर्पितः
    ''मेरा दुख तुम्‍हें अपना दुख नहीं लगता
    मुझे भी तुम्‍हारा सुख अपना सुख नहीं लगता''.

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  8. बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया

    समय के साथ कई पड़ाव आते हैं रिश्तों में ..... सुंदर रचना

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  9. बदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
    बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया...
    अच्छी रचना

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  10. आंखों ने जो देखा
    उसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
    कानों ने जो सुना
    उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।
    अक्सर यही स्तिथि दरारें पैदा कर देती है ...जब हम सारे खिड़की दरवाज़े बंद कर लेते हैं ...कोई आवाज़, कोई अहसास हम तक नहीं पहुँच पाता ... बेहतरीन रचना !!!!!

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  11. बहुत सुन्दर....... आंखों ने जो देखा
    उसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
    कानों ने जो सुना
    उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।

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  12. आप अपने मनोभावों को शब्द देने में सफल हुए हैं।

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  13. एक दम परमहंस वाली स्थिति है, इसी तरह मानव मन वीतरागता को प्राप्त करता है, जो बड़े-बड़े ॠषि मुनियों के लिए सहज नहीं है। प्रेम का पथ ही मोक्ष की ओर ले जाता है……………बहुत ही सुंदर भाव सहेजे हैं आपने… आभार "फ़्रेर फ़ोटो नई दिखत हे गौ, कहाँ किडनेप होगे?"

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  14. समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है..अच्छा लिखा है..

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  15. बहुत सुन्दर गहन विचार अभिव्यक्ति है...

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  16. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ............. रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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