गुरुकुल ५
Friday, 9 March 2012
तुम बदल गई ?
आप बदल गये
इसलिए मैं बदल गई
नहीं।
तुम बदल गई
इसलिए मैं बदल गया
मैं जैसी भी हूं
अच्छी हूं या गंदी हूं
आपकी अपनी हूं
नहीं।
तुम जैसी भी हो
तुम मेरी जिंदगी हो।
हमने पाल लिया एक भ्रम
बदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया
आंखों ने जो देखा
उसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
कानों ने जो सुना
उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।
हवाओं में आज भी
सरसराहट है
हाथ आज भी
खिड़की के बाहर है
बंद कमरे में आज भी
कोई चीखता है
और हर सू एक ही चेहरा दिखता है।
रमाकांत सिंह 01/03/2011
(चित्र गूगल से साभार)
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रिश्ता
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बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteRESENT POST...फुहार...फागुन...
बहुत गहन भाव लिए अच्छी रचना ...
ReplyDeleteबदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
ReplyDeleteबस समझने-समझाने का ढंग बदल गया...
सुंदर रचना...
अच्छी रचना...कोमल भाव लिए...
ReplyDeleteअगर बुरा ना माने...सिर्फ मेरे विचार हैं..
अच्छी हूँ या "गन्दी" हूँ...में यदि अच्छी हूँ या "बुरी" हूँ कर दें तो और काव्यात्मक लगे शायद...
सादर
THANKS.
Deleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
कल 10/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यह कराह है शायद, जो बंद कमरे की चीख सी लग रही है आपको.
ReplyDeleteसुझाव- अंतिम पंक्ति अगर इस तरह हो तो कैसा रहे ?
ReplyDeleteऔर हर सू एक ही चेहरा दिखता है.
टिप्पणी- इसी तारतम्य में दो लाइन (स्मरण कराते हुए) सप्रेम समर्पितः
''मेरा दुख तुम्हें अपना दुख नहीं लगता
मुझे भी तुम्हारा सुख अपना सुख नहीं लगता''.
बस समझने-समझाने का ढंग बदल गया
ReplyDeleteसमय के साथ कई पड़ाव आते हैं रिश्तों में ..... सुंदर रचना
बदला कुछ भी नहीं हमारे बीच
ReplyDeleteबस समझने-समझाने का ढंग बदल गया...
अच्छी रचना
आंखों ने जो देखा
ReplyDeleteउसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
कानों ने जो सुना
उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।
अक्सर यही स्तिथि दरारें पैदा कर देती है ...जब हम सारे खिड़की दरवाज़े बंद कर लेते हैं ...कोई आवाज़, कोई अहसास हम तक नहीं पहुँच पाता ... बेहतरीन रचना !!!!!
बहुत सुन्दर....... आंखों ने जो देखा
ReplyDeleteउसे ओठों ने कहना बंद कर दिया।
कानों ने जो सुना
उसे दिमाग ने पढ़ना बंद कर दिया।
आप अपने मनोभावों को शब्द देने में सफल हुए हैं।
ReplyDeleteएक दम परमहंस वाली स्थिति है, इसी तरह मानव मन वीतरागता को प्राप्त करता है, जो बड़े-बड़े ॠषि मुनियों के लिए सहज नहीं है। प्रेम का पथ ही मोक्ष की ओर ले जाता है……………बहुत ही सुंदर भाव सहेजे हैं आपने… आभार "फ़्रेर फ़ोटो नई दिखत हे गौ, कहाँ किडनेप होगे?"
ReplyDeleteसमय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है..अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहन विचार अभिव्यक्ति है...
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete............. रचना के लिए बधाई स्वीकारें.