गाओ मंगल गान
आया स्वर्ण विहान
मंथन कर दे युग के गौरव
कर दे अमृत दान
तेरा पौरुष बोल रहा
सागर रस्ता छोड़ रहा
राष्ट्र प्रेम के पुण्य पंथ पर
करते हम आह्वान
तरु पल्लव में छाई लाली
कोयल बोले डाली-डाली
तरुणाई ने ली अंगड़ाई
तन-मन-धन बलिदान
नव युग के नव ज्योत जला
तूफानों से होड़ लगा
बंधन तोड़ दृगों के जर्जर
दे नव धवल विहान
25/01/1977
चित्र गूगल से साभार
रमाकांत जी ने रचे, मस्त-मस्त पद छंद |
ReplyDeleteकोयल कूके भोर में, बहे बयार अति मंद ||
रमाकांत जी ने रचे, मस्त-मस्त पद छंद |
Deleteकोयल कूके भोर में, है बयार अति मंद ||
सुग्घर मंगल गान
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत...
सादर.
नव धवल विहान का अति सुन्दर आव्हान .
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत... वाह!
ReplyDeleteहार्दिक बढ़ाईया।
बहुत सुंदर,बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RESENT POST...काव्यान्जलि... तुम्हारा चेहरा.
बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteकल 28/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...
देश प्रेम से भरा सुन्दर मंगल गान... शुभकामनाएं
ReplyDeleteAtyant urjamay deshprem ka geet badhiya
ReplyDeleteनव युग के नव ज्योत जला
ReplyDeleteतूफानों से होड़ लगा
बंधन तोड़ दृगों के जर्जर
दे नव धवल विहान
अद्भुत पंक्तियाँ ...बहुत सुंदर
उत्साह का संचार कर देने वाली पंक्तियां, बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ...
ReplyDeleteतेरा पौरुष बोल रहा
ReplyDeleteसागर रस्ता छोड़ रहा
राष्ट्र प्रेम के पुण्य पंथ पर
करते हम आह्वान ...
बुत ही ओज़स्वी ... पाश्त्र प्रेम का ज्वार उठाती ... उत्तम रचना ...
नव युग के नव ज्योत जला
ReplyDeleteतूफानों से होड़ लगा
बंधन तोड़ दृगों के जर्जर
दे नव धवल विहान
..bahut sundar !!!!!
bahut hi khubsurat .
ReplyDeleteachchi prastuti
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