गुरुकुल ५

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Friday, 2 March 2012

पल


रमता जोगी बहता पानी
ये दुनियां का रीत पुरानी

बीते दिन बीते पल रैना
बिकल आत्मा पाये न चैना
काहे भर गये प्यासे नैना
दोहराता फिर वही कहानी

बिजली चमके जैसे घन में
सुख-दुःख हैं वैसे जीवन में
फिर क्यों भूला नश्वर तन में
करम किये जा तू भी दानी

बृथा भूल में पल बिसराया
बड़े भाग मानुष तन पाया
फिर माया क्यों कर भरमाया
मोह प्रीत में भूला प्रानी

अजब अनोखा तेरा खेला
सतरंगा जीवन का मेला
आये-जाये फिर भी अकेला
जीवन है बस आनी-जानी

चित्र गूगल से साभार
रमाकांत सिंह 06/05/1978 दंतेवाड़ा

14 comments:

  1. बृथा भूल में पल बिसराया
    बड़े भाग मानुष तन पाया
    फिर माया क्यों कर भरमाया
    मोह प्रीत में भूला प्रानी

    बहुत सही ...सुन्दर प्रस्तुति!

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  2. बहुत ही बढ़िया रचना है....
    बेहतरीन अभिव्यक्ति..

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  3. एकदम निरगुनिया.

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  4. अजब अनोखा तेरा खेला
    सतरंगा जीवन का मेला
    आये-जाये फिर भी अकेला
    जीवन है बस आनी-जानी
    जीवन की अंतिम सच्चाई यही है... अकेला आता है और अकेला ही जाता है...

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  5. दूनिया है आनी जानी रे बंदे
    दूनिया है आनी जानी।

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  6. भजन को मन गुनगुना रहा है..सूक्ष्मता से..

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  7. अजब अनोखा तेरा खेला
    सतरंगा जीवन का मेला
    आये-जाये फिर भी अकेला
    जीवन है बस आनी-जानी

    बहुत सुंदर रचना...आभार!

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  8. ...सुन्दर प्रस्तुति!

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  9. बहुत बढिया..................

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति ||

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