रमता जोगी बहता पानी
ये दुनियां का रीत पुरानी
बीते दिन बीते पल रैना
बिकल आत्मा पाये न चैना
काहे भर गये प्यासे नैना
दोहराता फिर वही कहानी
बिजली चमके जैसे घन में
सुख-दुःख हैं वैसे जीवन में
फिर क्यों भूला नश्वर तन में
करम किये जा तू भी दानी
बृथा भूल में पल बिसराया
बड़े भाग मानुष तन पाया
फिर माया क्यों कर भरमाया
मोह प्रीत में भूला प्रानी
अजब अनोखा तेरा खेला
सतरंगा जीवन का मेला
आये-जाये फिर भी अकेला
जीवन है बस आनी-जानी
चित्र गूगल से साभार
रमाकांत सिंह 06/05/1978 दंतेवाड़ा
बृथा भूल में पल बिसराया
ReplyDeleteबड़े भाग मानुष तन पाया
फिर माया क्यों कर भरमाया
मोह प्रीत में भूला प्रानी
बहुत सही ...सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत ही बढ़िया रचना है....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..
एकदम निरगुनिया.
ReplyDeletesunder abhivykti
ReplyDeleteअजब अनोखा तेरा खेला
ReplyDeleteसतरंगा जीवन का मेला
आये-जाये फिर भी अकेला
जीवन है बस आनी-जानी
जीवन की अंतिम सच्चाई यही है... अकेला आता है और अकेला ही जाता है...
दूनिया है आनी जानी रे बंदे
ReplyDeleteदूनिया है आनी जानी।
interesting..
ReplyDeleteभजन को मन गुनगुना रहा है..सूक्ष्मता से..
ReplyDeleteअजब अनोखा तेरा खेला
ReplyDeleteसतरंगा जीवन का मेला
आये-जाये फिर भी अकेला
जीवन है बस आनी-जानी
बहुत सुंदर रचना...आभार!
bahut sundar....
ReplyDeletebahut sundar....
ReplyDelete...सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत बढिया..................
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ||
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