हाथों की मुट्ठियां तब
हाथों की अंगुलियां कब?
खुली रह गई इतनी कि
अंजुरी में धरे पल
चुक गये हाथों से
रेत कणों की तरह
और मैं निहारता रहा
हाथों की मुट्ठियां अब
और हाथो की अंगुलियां कब?
क्यों बंध गये इतने?
कि अंगुलियों में कसी सांसों ने
दम तोड़ना शुरू कर दिया
और मैं आज भी
निहारता रहा बेबस
हर बार क्यों?
एक नया प्रश्न
प्रश्न पर प्रश्न
और उत्तर पर
पुनः वही प्रश्न
तब क्यों खुली रह गई मुट्ठियां?
और बंध गये हाथ
और आज क्यों बंद हो गई मुट्ठियां?
खुले रह गये हाथ
रमाकांत सिंह होली बुधवार 11/03/2009
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteहोली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
भाग्य का खेला है ये...कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं
ReplyDeleteसार्थक रचना..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 -03 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete..रंग की तरंग में होली की शुभकामनायें .. नयी पुरानी हलचल में .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteफाग मुबारक...
ऐसा सच कि हम मानना ही नहीं चाहते हैं..बहुत सुन्दर ..होली की शुभकामनाएं..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
bahut badhiya
ReplyDeletebahut gahan bhav abhivykti hai...
holi parv ki dher sari shubh kamnaye...
unfortunatly it happened so please forgive me.
Deleteit will be your greatness and my pleasure.
बंद तो मुट्ठी खाक की, खुली तो प्यारे...
ReplyDeleteयही उहापोह है जीवन की...... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDelete