गुरुकुल ५

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Tuesday, 6 March 2012

कल और आज

हाथों की मुट्ठियां तब
हाथों की अंगुलियां कब?
खुली रह गई इतनी कि
अंजुरी में धरे पल
चुक गये हाथों से
रेत कणों की तरह

और मैं निहारता रहा

हाथों की मुट्ठियां अब
और हाथो की अंगुलियां कब?

क्यों बंध गये इतने?
कि अंगुलियों में कसी सांसों ने
दम तोड़ना शुरू कर दिया
और मैं आज भी
निहारता रहा बेबस

हर बार क्यों?
एक नया प्रश्न
प्रश्न पर प्रश्न
और उत्तर पर
पुनः वही प्रश्न
तब क्यों खुली रह गई मुट्ठियां?
और बंध गये हाथ
और आज क्यों बंद हो गई मुट्ठियां?
खुले रह गये हाथ

रमाकांत सिंह होली बुधवार 11/03/2009
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति....
    होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,

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  2. भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.......

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  3. सुन्दर प्रस्तुति |

    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  4. भाग्य का खेला है ये...कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं
    सार्थक रचना..

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  5. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 -03 -2012 को यहाँ भी है

    ..रंग की तरंग में होली की शुभकामनायें .. नयी पुरानी हलचल में .

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

    फाग मुबारक...

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  7. ऐसा सच कि हम मानना ही नहीं चाहते हैं..बहुत सुन्दर ..होली की शुभकामनाएं..

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  8. बहुत ही बढ़िया
    आपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  9. बहुत ही बढ़िया
    आपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  10. bahut badhiya
    bahut gahan bhav abhivykti hai...
    holi parv ki dher sari shubh kamnaye...

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    Replies
    1. unfortunatly it happened so please forgive me.
      it will be your greatness and my pleasure.

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  11. बंद तो मुट्ठी खाक की, खुली तो प्‍यारे...

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  12. यही उहापोह है जीवन की...... सुंदर अभिव्यक्ति

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