आज के दौर में स्नेह और आत्मीयता की टूटती कडि़यों
बिखरते संबंधों के साथ मुझे
अपने पिछवाड़े बंधी भैंस याद आने लगती है।
एक बार मैने भैंस को बांध दिया सांकल से,
सांकल को बांध दिया खूंटे से, अब खूंटे को
गाड़ दिया जमीन में और सो गया चादर तानकर।
हम सदैव सोचते हैं कि हमने अपने दायित्वों का
निर्वहन कर दिया, हो गई दायित्वों की इति।
मैने अपने कर्तव्य पूर्ण कर लिए।
मैने कभी भी पूरक बिंदुओं पर ध्यान नहीं दिया,
न ही कभी किसी कमी पर अपना ध्यान केंद्रित किया
और पूरी निश्चिंतता से पांव पसारकर नींद ले ली।
अचानक आंख खुली और मैने पाया कि जिन
पौधों को बड़े जतन से अपने श्रमकणों से सींचा था
उन पौधों को भैंस ने कुछ ही पलों में ठूंठ में बदल दिया।
एक लंबे समय तक पीड़ा से छटपटाता रहा,
विचार करता रहा कि एक ही पल में यह कैसे हो गया?
वास्तव में नुकसान के बाद पूरी बातें समझ में आई
कि भैंस सांकल से बंधी थी, सांकल खूंटे से बंधी थी,
और खूंटा गाड़ा गया था जमीन में जब सब कुछ ठीक है
तो पौधे ठूंठ में कैसे बदल गए?
वास्तव में मैं सांकल की प्रत्येक कड़ी को देखना भूल गया,
एक कमजोर कड़ी को परखना भूल गया।
बस फिर क्या था खुल गई भैंस।
और इसी एक चूक ने मेरे बरसों के परिश्रम पर पानी फेर दिया।
मै आज समझ पाया कि प्रत्येक पल प्रति क्षण मुझे सजग और चेतन रहना था।
सभी कडि़यां महत्वपूर्ण हैं प्रति पल का ध्यान रहे तभी हमारा पूर्व कार्य सार्थक
और यथावत बच पाता है।
रमाकांत सिंह 16/01/2010 अकलतरा मेरी आत्मकथा से
अद्भुत.........
ReplyDeleteसादर नमन आपके विचारों और लेखनी को....
दिल में गहरे उतर गए एक एक शब्द....
एक कमजोर कड़ी को परखना भूल गया।
बस फिर क्या था खुल गई भैंस।
लाजवाब....
एक कमजोर कड़ी को परखना भूल गया था...
ReplyDeleteअत्यंत सार्थक चिंतन...
Achhi rachana likhate rahe par kewal smritiyo par hi vartman par bhi kyoki"panw chane aur malne
ReplyDeleteKe alawa bhi bahut kuchh hai jeewn me
Rajesh tathavT
रिश्तो की डोर बहुत ही नाजुक होती है जरा सी लापरवाही से टूटना तो है ही......
ReplyDeleteवास्तव में मैं सांकल की प्रत्येक कड़ी को देखना भूल गया,
एक कमजोर कड़ी को परखना भूल गया।
बस फिर क्या था खुल गई भैंस।
बहुत ही सुन्दर ,सार्थक रचना.........लाजवाब प्रस्तुति.....
सभी कडि़यां महत्वपूर्ण हैं प्रति पल का ध्यान रहे तभी हमारा पूर्व कार्य सार्थक
ReplyDeleteऔर यथावत बच पाता है।
...बिलकुल सच...बहुत सार्थक चिंतन...
bahut hi shashwat aur sarthak rachna
ReplyDeleteकमजोर कड़ी धोखेबाज होती है, समझदारी यही है कि कमजोर कड़ी का ध्यान रखा जाए……… अन्यथा भैंस का तो काम ही चरना है :)
ReplyDeleteवास्तव में मैं सांकल की प्रत्येक कड़ी को देखना भूल गया,
ReplyDeleteएक कमजोर कड़ी को परखना भूल गया।
जीवन के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....
सच है जीवन की सभी कड़ियों पर ध्यान देना होता है, एक भी कड़ी अनदेखी रह गई तो निश्चित ही चूक होगी. सार्थक रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसभी कडि़यां महत्वपूर्ण हैं प्रति पल का ध्यान रहे तभी हमारा पूर्व कार्य सार्थक और यथावत बच पाता है।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात.....
मोर कमेंट कहाँ गए गौ?
ReplyDeleteसभी कडि़यां महत्वपूर्ण हैं प्रति पल का ध्यान रहे तभी हमारा पूर्व कार्य सार्थक और यथावत बच पाता है।
ReplyDeleteहां, जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की प्रत्येक कड़ी महत्वपूर्ण है।
Bahut achhe keep it up.bhainse ke buniyadi charitrya me koi badlaw nai banusahab yani"Bhainsa ke aage been bajaye bhains khadi pagurai"
ReplyDeleteबहुत खूब ... सच है की सजग रहना पढता है हर कदम पे ...
ReplyDeleteसभी कड़ियाँ मज़बूत होनी अनिवार्य हैं .... उम्दा प्रस्तुति .. !!
ReplyDeleteकमजोर कड़ी की परख होनी चाहिए ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteएक सार्थक सन्देश!
ReplyDeleteसुक्ष्म चिंतन को प्रेरित करता सार्थक संदेश!! आभार!!
ReplyDeleteसूक्ष्म व सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteएक बार मैने भैंस को बांध दिया सांकल से,
ReplyDeleteसांकल को बांध दिया खूंटे से, अब खूंटे को
गाड़ दिया जमीन में और सो गया चादर तानकर।
..........बहुत ही नाजुक होती है रिश्तो की डोर