लहर म नई मिलय डहर
ए बछर घेरी बेरी बरसिस बादर फेर
काबर अकलतरा के मनषे चांय चाँय करत हे पानी बर
नदिया नरवा के जाल हवय हमर छत्तीसगढ़ म
फेर काकर सेतिर दलहा गूँगवा गूँगवा रहि जाथे बरसय नहीं, घोपे रथे बादर फेर डंहक डंहक देत हे चार कोस ।
डिपरा म बसे हवय अकलतरा बस्ती नई ये पानी
बेनी महाराज, उंकर लोग लईका आन गांव के पानी सोधईया तामा के डॉडी धर किन्दर डारिन चारों मुड़ा हरदी वाला महाराज कहिन नई आय बस्ती भीतरी पानी ....
कतको बुल के आ बिही डारि ...आउ धर के नरियर भेला
ढेंकी कस कूट डारिन उत्ति बुड़ती सब्बो मुड़ा ल पानी खोदे के मशीन म फुतका उड़ागे फेर चिरई पिये बर एक बूंद पानी छेद डारे हें अकलतरा के छाती ल सब्बो जगा
अकलतरा के भीतरी बस्ती म नई ओगरिस कोंहुँ कोती ...नई हे पानी त नई हे
ओगरिस त इंदिरा उद्यान कति ओती पानी च पानी
आज भले मेकरा कस जाल गंथा गे हवय नहर गांव के गली खोर म फेर जुन्ना दिन म तला म गरूआ पिये बर भारी मुश्कुल हो जावय, बर बिहाव, मरनी हरनी म गांव गंवतरी जावय त निहार के तमड़ लेहे रहय दिन के अंजोर म तला पोखरी ल जेमा सासत आड़े झूलझुलहा हरु होत बन जावय । आजकाल नहर के चारों कोती डहरे डहर...
जुन्ना बेरा म गिरगे बादर ले पानी त खेत खार मनषे सबके छाती जुड़ा जावय नहीं त दरगार हन देवय खेत म ।
अंकरस जोंते खेत म पहिली बादर बरसिस के बोनि हो जावय बतर म, आउ कभू एक पाख आँखोर दिस बरसा त भथा जावय जामे बीज, फेर बोनी कर , खोज बिजहा डेढ़ी दूनी बाढ़ी म करे बर परय केलाउली घेरी बेरी ।
बिजहा सब किसान नई राखय न देवय आउ मांगबे त तोर कोन लगवार देहि । बिजहा रखै गांव धनी जेकर ढाबा म नावा टीन छवाये हवय ..चारों कोती चमचम ले बांस के गंथना के पाखा छबाये हवय । बिजहा के हेराइ, धराई, नपाई, फेर ढाबा म नां लिख पोंछ के धरना तोरे बुता ।
देखे हवन लईकाई म कई दिन के झक्कर .... मुलमुला म
कका कहय .....कर रे झड़ी छेरी मरय कोनहा तरी
गरूआ ढिलाबे नई करय, कोठा म जड़ाके मर जावय
हर बरिस के दुकाल म पैरा घलाऊ ह कतका कन पुरय
भुखन रठ जावय गाभिन भैंस घलाऊ ह । झोर झोर के गिरय पानी त सरई के मुड़का लहंस जावय एकंगू ।
भर जावय नानजात मुसुआ के बिला म पानी त ढील पर जावय मुड़का के जरी फेर का लँहसगे जेती पाइस तेती
टेड़ागे डेरी जेवनी मुरकेटाके ....मुडका ,मियार, कंड़ेरी,
गिरीस त कोठा के सब परानी लदकाके मरगे ।
करिया बबा ( डोंड़की ) मुलमुला कहय सुन रे बेटा
मघा के बरसे आउ महतारी के परसे कभू नई छुटय ।।
फेर बाह रे बरिस एकहत्तर के दुकाल...
नीरबीज दुकाल परिस बिजहा नई लहुटीस
गरौँसा के खेत के धान अईंठ के मरगे....
पोटरी तीरे धान खड़े खड़े जरगे घाम म....बान मारे कस
कपार के लिखे ल कोन बांचे सकय
पानी बरसिस तेहु ह गरूआ चरागन होगे त
ई ल कथें दई ले गे त ले गे,,,, आउ दमाद ले गे त ले गे
छप्पन के दुकाल म बने बने मनखे के करमनिया डोलगय रहिस । नरियरा के सागर तला बावन एकर के आय नई चिन्हावय ओ मुड़ा के कोंहुँ गोतीयार ए मुड़ा ले । अजलेम गोठ लागथे जब कथें के कुसियार बोंवावय बरछा म ....
ई पानी के सासत म कहाँ ले पलोवय कुसियार म पानी
ओ बरिस ...परिस अंकाल त गौटिया मन ल बनाईन मेट
आउ बनीस तला के मेढ़ पार आउ सड़क म परिस माटी
गां के किसान कोड़ीस खंती, कोंहुँ हथेना त कोंहुँ बितंगी
त कोंहुँ अनहेजरा कोड़ के बना दिस डिपरा ल अपन नापी
आज घलो जांजगीर कलेट्टर के दुवारी म दंग दंग ले
भूत कस पहरा देवत किस्सा कहत हे लुकुगाड़ी ।।।
दुकाल आये रहिस सब्बो बर हैजा आउ .......माता कस
बिहाये बेटी के पुतरी, तोड़ा ल जेवर धरके ब्यासनगर के ब्यास महाराज करा लाये रहिंन धान त चुलहा जरिस ।
बैरी ल झन देखावय ओ दिन ...लईका कलपगे रहिस ।
पानी के सासत झेले हवय सब्बो मनखे.....
बने बने मनषे खेत नींदे गईँन त भूति नई मिलिस
फेर अकलतरा के पानी के सासत के कथा आय के कंथुली आज घलो जे जियत हे चिंहुक जाथे ।
बस्ती भर कुंआ के रेर परत हे फेर पानी के दुख
कुंआ भीतरी चूँआ खनाय देखे हं
भीतरी म उतरय सुजान मनषे , गाड़ा डोर के अपेच म
घेरी बेरी फेर सबके एक एक नापी म उतरय बाल्टी
नाम धरके बाल्टी आउ हौंला भरावय ....
किस्सा नो हय जा पूछ देख ....गवाही खड़े हवय
नंदलाल कुंआ, बजार कुंआ, माता मंदिर कुंआ, मज्जिद कुंआ, बड़े मिल कुंआ, बस्ती कुंआ, छोटे बखरी घर कुंआ,
बावा कुंआ, देवांगन कुंआ, पलेटियर कुंआ, का का ल बखानव रामसागर तला भीतरी कई ठन झेरिया एकरे संग म पुरेनहा आउ गोपिया तला म कई ठन झेरिया संग कुंआ
सबले सुग्घर आज घलो लागथे मोला खांडे कुंआ ।
फेर एक बात आज देखें काल नई रहिस आउ रहिस त
मोला नई दिखिस न धरिस काबर ...
मनषे के रंग, जात, धरम, लिंग, गोत , बरन, मुड़ी
देखे हव होली म रंग लगावत गोड़ छुवत नता-गोता
दीवाली म दिया बारत महतारी
२२ फरवरी २०२४ दिन बुधवार
तेरस माघ शुक्ल पाख
मांसी नहीं मां ही श्रीमती बीना दीदी को समर्पित
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