काल करइन के छांदी ले
बिन कपाट परछी के घर म
बिन पूछे झर झर ले आवय
सुर्रा, घाम, टिप टिप पानी संग जाड़
रिमिर झिमिर पानी गिरय त
जेठ म गमक जाये मोर गांव के धरसा
ठड़ीया जावय जाड़ म सन्ना के रुंवा
बड़ बिहनियाँ, संझा, मंझनियाँ
फेर कहां गए चलिस घाम कोन मेर बानी
तरिया के छोंड़ मयारूख मनखे के पानी
आज कांप जाथे तन फेर नई भरय मन
सुनबे त करत हे कान सनन .....सनन
ए दे देख तो पथरा ईंटा के घर म रहिके
मईनषे घलो आज पथरा ईंटा के होंगे
(एक जुन्ना १३ बछर पहिली मन के बात सुरता आईस)
समय के पाँख पोठा के तन..तन हो उड़ चलिस अगास म
मन के पीरा निकरके चौंरा म आ बइठ डैना पसार दिस
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