माढे रथे कई पीढ़ी ले कई पीढ़ी के राब
हेरत, झेलत, निकरत, तिरत, तमड़त निकर जाथे जिनगी
राब ल हेर के अलग करके रखना बड़ मुश्कुल आय ।
ए ह धीरे धीरे माढत जाथे पुरुत के ऊपर पुरुत
ए ह आमरस कस लागथे घला आउ सुवाद घला देथे
बड़ कठिन आय राब ले बोचक पाना
ओकरो ले मुश्कुल आए राब बिन रह पाना
घर के नल्ली म कई पीढ़ी के राब माढ़े रहिथे
सियान बनाइस निकासी के दुआरी ...
कोन मेर कोन बनाइस कोन जानय?
सांप, बिछी , छुछुआ केकरा घोंघी झन घुसरय ....
तेकर सेतिर चोर दरवाज़ा बना दिस निकासी के ....
१०० बछर पूरे बर रहिस माढ़गे काफ ह नरी के आत ले
सात पुश्त पहिली बने नल्ली कोन कईसे बनवाय रहिस?
गंधा गे घर दुआरी महकगे अँगना ओसारी...
आजा, बबा, ददा, भाई, भतीज, नाती, नतुरा तेकर ले
आये गए नता गोता संग तीज, तिहार, बिहाव, छट्ठी
नेंग, चार आये गए सब संग एंकर नहाए, खुन्दे, थूंके, कचरे, मरनी-हरनी सब के राब माढ़े रहिस नल्ली म...
सुजान मनखे सब बद्दी ल मुड़ म बोहके...खोजथे निकासी बिन निकासी के मुँहड़ा सफ्फा करे...त
थक जाबे झेलत पानी नई निकलय माढ़े काफ...
निकासी ल चुलाय बर परथें ,अगिया आउ पाठा कस मुड़ी
बड़ हिसाब लगाके एकर मुड़ी ल चुलाथे बईद....
एको ठन आँतर परीस त कई ठन मुड़ी बन ...पर जाथे...
बड़े मनषे के देंह म रुंवा के टोटका कहाँ आय ।
जे ठन रुआ तै ठन मुड़ी .....
घर के सियान एकर बाढ़े के पहिली ओखद लगा देथे
मुड़ी देखके मुड़ी छोंड़ के छाब देथे गहुँ पिसान...
जानकार बईद छाब देथे मुनगा गादा...त कोंहुँ अरसी
बड़का दाई छाब देवय अंडी तेल संग गोबर के राख
निकर गे पीप त उबरगे मनषे ....
नहीं त बस्सा जाथे इहुँ ह नल्ली कस **** राब ****
निकासी के दुआरी म कपाट घलो नई लगय
मुँहड़ा मूंद देहे त बरसत पानी घलो निकलही कति
निकासी बनाके रखे बर परथें नहीं त .....
सीढ़ चढ़ जाथे हवेली घलो म ....
फेर माटी के घर तो महक जाथे .....
बबा Ravindra Sisodia कथें
देंह के चिस्का छोंड़ाके मनषे हरू हो जाथे मईल से
फेर मन के मईल ब भगवत भजन संग कथे. मथे बर परथे
ए मन बड़ चँचल आय झटकन नई छोड़य गुहरी मांस
फागुन कृष्ण पक्ष द्वितीया
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