सुंदरलाल उपाध्याय जी मुलमुला बखरी के पंडित जी
सादा नीलम के धोती तेमा नील आउ कलफ लगे
सादा लट्ठा के बण्डी तेकर जेब म शेर छाप बीड़ी आउ माखुर धराय मजाल का हवय के कोंहुँ ल हूत कराईस आउ बिन पैलगी ओखर गोड़ उसलगे ।
उपाध्याय जी एक लरी के बाँख के डोरी जांघ म बरय जांघ के रूंवा झर जावय फेर डोरी के नमूना नई बिगड़य ।
बारीक काम बुता के बड़ शौखिन पंडित जी आज ५० बछर के गाँथे मांचा मथुरा दाई के ओरसारी म हवय ।
फेर बढ़ईकम के घलो धनित्तर आय जेकर घर के बने के सांईत धरागे त खपरा के छवात ले उपाध्याय जी के बीड़ी ओकरे आंट म सुलगीस आउ बुझाईस ।
हमर बट्टू ददा ओकर चिलम गंठवईया संगी रहिस
कभू-कभू उपाध्याय महाराज एक सांस म चिलम ल सुरक देवय, जीवन घसिया नई सुरके पावय त कंझा जावय ।
फेर गांठय गांजा बनावय बुच के गोली चिलम दगाये बर
इही चिलम के धुंआ के मया म बट्टू बबा के गुंडी के घर छवाइस , धनी कका बार नवापारा के जंगल ले डोहारे रहिस सरई के मुड़का मियार आउ कर्रा के कंडेरी
चमचम ले बनिस घर लकरी के आउ लिखाय देखे रहें हिंदी म मालिक बट्टू सिंह मुलमुला, बढ़ाई ननकी राम कश्यप साज सज्जा की कलाकारी सुंदर लाल उपाध्याय
मुलमुला बखरी के छाँ म महाराज के भरे पूरे घर .....
महाराज के जुलुवा दिखय पटईल, राऊत, कुर्मी, घसिया, भैना, तेली, गोंड़, धोबी, केंवट, सतनामी, सुरुजबंशी के अशीष म सब बर पुर जावय गोरस देत घानी ।
उपाध्याय जी गाय गोरु के बड़ शौखिन आउ दूध के धनित्तर ...तेकर खातिर बारों महीना आठों काल १२ सेर दूध बिहनियां मंझनियाँ कौड़ा म चुरत रहय ।
हमर देखत म मुलमुला गांव के कोंहुँ लईका दूध के सेतिर भुखन नई सुतीस, कतको बेर संकरी खटखटवाके गोरस मांग लिस पंडित जी के दुवारी ले । कातिक राम राउत इही खातिर अपन बरवाही के गोरस घलो ल छोड़ दय ।
बिहनियां संझा भर मंझनियाँ कभू कोई महतारी खाली चरु, गिलास, लोटा देहरी ले नई लहुटीस, कौड़ा म चुरत दूध साढ़ी संग देहे म नजर नई टेढ़वा होइस ।
सबके ओली म धराय रहय धान ..के कुछु ओनारी.. खूंटी के टँगाय सूपा म माढीस जिनिस आउ भर गे लोटा चरु।
जे नई लाय सकिस जिनिस ते ह पटक दिस दु बींड़ा कांदी
इही खातिर न महाराज के ढेरा थिरकिस न अशीष ।लईका, सियान, बहुरिया, डोकरी दाई सब गोड़ छुवय ।
हर बछर सबले आखिरी म महाराज के खरही मिंजावय ।
खरही म टँगाय चिरई खाये के पट्टी ल गुड़ेरिया फोकल
डारय त दौंरी फंदाय जेठ म ।
सन अड़तालीस म परे रहिस दुकाल.....
देवउठनी एकादशी के बिहान दिन खमखमाय रहिस गुड़ी
घांघडा लगे गाड़ी बईला ले कोसीर के मनराखन गऊरहा जी उतरीन, छै फुटिया तडंग जवान गौंहा डोमी कस लकलकावत देंह सबके पैलगी जोहर झोंकिस आउ उपाध्याय जी घलो ल अपन पैलगी कहिस ।
गुंडी घर म बनगे च.. आगे माखुर बीड़ी.. फेर सब एक दूसर के मुँ देखत के आखिर मनराखन महाराज कईसे ई भर बिहनहा काय काम बर ..काकर करा.. आये हांवय ।
च गांजा चोंगी माखुर होए के आखिर म मनराखन महाराज के संग आय मर्दनिया ह अपन आये के हिसाब ल बताइस के उपाध्याय जी के बड़े बाबू बर बिहाव के सोर लेके आय हवन तूं अपन बचन ल बताता तइसनहा....
बस सनसनागे गुंडी । बखरी के चार सियान के आगू म होगे बचन बद्ध दुनों महाराज । फुटगे नरियर होगे वाक़दान गांव भर परगे सोर दलहा कस आगी बगरगे चारों मुंड़ा माड़गे बिहाव महाराज के बड़े दाऊ के ।।
रामनवमी के लगन म होंगे बिहाव , उतरगे डोला,
नवा बहुरिया अमागे कुरिया म ...........
फेर मनखे मन के अवई थोरे थिरकिस नई थिरकिस पहुना
घर म । नवा भीतरहिन आगे महाराज घलो ठमण्डी होगे
गाय गोरु के देख रेख के अपेच होइस फेर मांढ़गे ।
नवा महराजिन अपन संग म धर लाइन रूप आउ गुन....
सुग्घर कद काठी संग कन्हीया के जात ले करिया चुन्दी
बड़े बड़े गटारन कस ऑंखि, चिक्कन गाल, सुताई कस फरकत ओंठ, चाक्कर माथा , बिछी कस टेढ़वा भौं तेमा गोल लाल टिकली कुल देखत म महराजिन साकसात दुर्गा माई कस लऊक जावय ।।
ओईच बिहनियां, ओई सांझ, ओई लईका ओईच पहुना पहि कुछु म अदला बदली नई होइस जस के तस.....।
जस के तस दूध के लेन देन सुरु होगे, ई घानी अब संकरी ल खड़बड़वाये बर परे लागिस , अभो घलो धान, ओनारी
आवय फेर दूध ढ़रईया हाथ संग आँखि बदलगे हो राम...
सूपा म गिराय ओली के जिनिस आउ लोटा चरु म दूध
फेर कभू कभार महराजिन के अपन मन के हँसाई...
मने मन म बिन गोठ के गोठ बुड़बुड़ाई आउ एकेच घरी म बेर ..कुबेर छटक जावय आँखि .........
हांस घला देवय महराजिन अपने अपन..........
अब घर अवईया...जवईया ... मन झझके बर धर लिन ।
पहिली लईका पिचका कोंहुँ मन दूध लेहे चल देवय ।
अब मनषे मन देहरी खुन्दे ल झझके बर धर लिन ।
हमर कोसीरहीन बड़े दाई के उदिम घलो बड़ अकारथ रहिस, कतको बेर कुबेर आँखि छँटकार के हांसय ते एक कति, आधा रात के ठाकुर घाट म नहाय चल देवय ।
नहा के आवत बेरा म कोंहुँ ल देख के हौंला के पानी ल झरर्स ले डहर म डार देवय, कोकरो देह म परय के कोंहुँ भिजय का लेना देना ।।। कातिक के महीना म अकेल्ला बर घाट चल देवय नहाय उहें मगन हांसे बुड़ बड़ाये म ।
रोज मुड़ धो देवय आउ फटकार फटकार के आगू पीछू ऐंड़हा बेड़हा चुन्दी ल झर्रा देवय । ओकर नहावत ले ठाकुर घाट ओकरेच आय ......काकर पुरखारत के पंछी तिर घलो कोई चांटी मांछि डोल जावय ।
संजोग कहा के भाग घटत गईस होनी.......
साल भर के भीतरी पठऊनी के लहुटे के बाद कोला के फरत मुनगा के पेड़ ठाढ़ सुखागे, कोला के पैरावट म आधा रात अपन मन के आगि लगगे ।।
दुबर ब दु अषाढ़ होइस के नहीं राम जानय
फेर लागिस के करेला लिम के पेड़ म चढ़गे
राम जानय का सच क्या लबारी हरेली तिहार के रात उपाध्याय जी के घर के दुवारी म लपलपावत दिया देखिन
बड़े बिहनियां उपाध्याय जी के नाती खैत्ता होगे ।
हमर खोखरहीन दाई कहय कसरहा हो गईस बाबू
ओकरे लईका ल ओकरे झाँक परगे
नई जागीस मसान ह नई बलाय सकिस रिक्षीन ल
लच्छनपुरहिन के लईका चार दिन परे रहिस अल्लर
घेरी बेरी चमक जावय गीगीआवय बइगा आइस होम धूप फेरिस त माढ़ीस गां के मन कहय मुठ मारे रहिस के बान
*?????** कसरहा **???? होगे मंतरा ह ।।
उलटिस बान ह त ओकरे लईका ह फंद जाथे ओकरे मंतरा म ,बड़ अलकर हो जाथे फेर एला साधे म ।।
सुने म आथे हरेली तिहार म जागथे मसान
आउ उल्टिस बान त .... हो जाथे ***** ????
माघ शुक्ल पाख अष्टमी
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