लकरी जल कोयला भई, कोयला जल भई राख ।
मालिक सूत नौकर भये, खोईला चूर भये साग ।।
1980 के बछर म टेक्टर लेवाइस , बड़प्पन ब नहीं
पेट जिये बर, चारो कति जी बहंचाय के जुगत...
भांय भांय करत समय कोंहुँ कोती कुछु खँजा नहीं....
मुं तोपे के ठउर मिल जाय काम धंधा म लग जावय ठिकाना माटी, ईंटा, रेती, दर्रा डोहार के ....
अन्ते-तंते आये रहिस नहर ...हमन भगवान भरोसे...
पुरो पुरो के पानी घलो ल मनषे बऊरय दिन बादर देखके
बबा Ravindra Sisodia ल पूछें कस बबा कब आईस
बिजली हमर घर ....त... बताईस हमर घर के नम्बर आय
१८ अट्ठारा ओहुँ ह सोझ नई मिलिस अगोरे वाला रहिस
१९५९ म आइस बिजली फेर सरत रहिस १० ठन लेहे बर
गड़े रहिस लकरी के खम्हा तेमा अलग अलग हुक्सा लगय
डोमी कस बिच्छल करिया लाइन मेन तेकर पीछू सब लईका , बिजली बरिस फेर ओहो... आहा ....
मोर बबा भान सिंह मुलमुला एक ठन सुरता सुनाइस
आये रहिंन दीवान ददा अकलतरा ले बुले
जेठ के भर मंझनियाँ मुलमुला म खोजे बर परगे कुछु
खाये के नई मिलिस ....फेर माढ़गे खँजा....
आगे कौड़ा के चूरे दूध म कुछु जिनिस
देवान ददा खाइस त मिठागे मया म...
ए ह काय आय भाँचा बड़ सुग्घर बने हे
कुछु नो हय ममा कोला के पाके केरा के सुख़री आय
दूध म चूरगे आउ तुंहर मया म मिठागे ।
भुखन मरें त महुँ कमाए खाये भाग गये रहें दंतेवाड़ा
पंचर जोड़त ,स्पोक बदलत, छर्रा बदलत नई बदलिस कपार के लिखे ह .... साग भाजी के छोड़ एक जुवार के खँजा बड़ मुश्कुल हो जावय बिहनियाँ हवय त संझा ...?
१९८० म लहुंट आये रहें दंतेवाड़ा ले.....
ममा घर गये रहें खेत जोंते त खाये रहें भांटा, खोईला संग
रमकेरिया के साग नवा अमली के कढ़ी वाला साग...
फेर बड़ दिन म गयें ममा घर त सईगोन के दुआरी, त संगमरमर के पखना, आउ नवा नवा भात दार रांधे के मसीन देख छाती जुड़ागे ।।
बने बने मनखे के देंह आउ औकात *खोईला * हो गये रहिस समय के मार म .....***खोईला ..के ..सुख़री ***
सुखो दे समय के घाम म त गुदा ह चूर के ओईच म सूखा जाथे ,,,, फेर तोर औकात रहय जतन के धरे के त....
फेर हेर ...निमार ...आउ चुरो समय देख... त मिठाही
खोईला बोइर के, आमा के बनीस अमचूर, जम्मो भाजी के खोईला, अमारु पटुआ, मखना फोकला , बरबट्टी, पताल, राहेर दार, तिवरा, मसूरी, जम्मो दार के * सुख़री *
बने देख सरेख के राखे बर परथें सुख़री घलो ल
बीच बीच म देखाये बर परथे घाम नहीं त..... बु बू ...
सुख़री आउ खोईला एके होही काय
लोहा के सीढ़िया आउ नीमरा नता कस होथे हो...
एला जँचोत देखत लहुटात रहा नहीं त घुना सर जाथे
फेर किरा परगे त फेंके बर परथें घुरुआ म अकारथ ।
पुन्नी माघ २०२४
दिन सनीचर
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