गुरुकुल ५

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Tuesday, 31 December 2013

अलविदा

क्या तो तू, और क्या तेरी औकात

*
क्या तो तू
और क्या तेरी औकात
कल थी?
आज चली जायेगी?
क्या सोचती हो?
मैं मर जाऊँगा?

**
तेरे एहसास से दिल ग़मज़दा है इतना
यूँ तेरा जाना भी दिल कबूल कर गया

***
हर बरस सोचता हूँ
मेले लगेंगे तुझे अलविदा कहने
ज़रा सोच !
आज!
तेरे आँचल में बचा क्या है?

****
तेरा भरोसा क्या?
बड़े सपने लेकर आती है
बड़े ख्वाब भी दिखा जाती है
और साथ चलकर सब छीन ले जाती है

*****
अब न तेरे इश्क़ में डूबना इस कदर
कि होश आये तो गिरेबां चाक मिले

******
जाम कुछ इस क़दर मैं उठाउंगा कि न छलके न ढलके
आज नशा इतना ही रहे कि मंज़िल वो राह का होश रहे

31 दिसम्बर 2013

समर्पित कलमुँही २०१३ को
जिसने सपने बड़े दिखाकर
बहुत कुछ छीन लिया  

9 comments:

  1. "नर हो न निराश करो मन को
    कुछ काम करो कुछ काम करो
    जग में रह-कर कुछ नाम करो ।
    यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
    समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
    कुछ तो उपयुक्त करो तन को
    नर हो न निराश करो मन को ।"
    संभवतः मैथिलीशरण गुप्त

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  2. आशा से आकाश थमा है साँस तंतु कब टूटे ......... आशा बरक़रार रखिये, यही जिंदगी है
    नई पोस्ट नया वर्ष !
    नई पोस्ट मिशन मून

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  3. बहुत खूबसूरत .....नव वर्ष के आगमन पर पर सार्थक रचना........शुभकामनायें।

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  4. अब जो बीत गया सो बीत गया ... क्या चिंता करनी ...
    २०१४ का स्वागत करना है ... आपको भी हमें भी ... नव वर्ष मंगल मय हो ...

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  5. बने गरियाए हस 13 ल, 14 के बधाई झोंक लेवा :)

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  6. नव वर्ष पर सार्थक रचना... आप को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. बाप रे!! कलमुँही पर इतना गुस्सा.. तो अब जो आयेगी कुछ देर में उसकी मुँहदिखाई का क्या इंतज़ाम किया गया है!! :)

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  8. अब न तेरे इश्क़ में डूबना इस कदर
    कि होश आये तो गिरेबां चाक मिले
    --वाह!वाह!
    बहुत खूब .
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  9. कोई दूसरा नहीं छीनता...हम खुद ही आँख मूंद बैठ रहते हैं..

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